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पद्मपुराणे नाम श्रुत्वा प्रणमति जनः पुण्यभाजा नराणां
चारुस्त्रीणां निखिलविषयप्रापिसङ्घा भवन्ति । उत्पद्यन्ते परमविभवा विस्मयानां निवासाः
शैत्यं यायाद् रविरपि ततः पुण्यबन्धे यतध्वम् ॥३८३॥ इत्यार्षे रविषेणाचार्यप्रोक्त पद्मचरिते मरुत्वयज्ञध्वंसनपदानुगाभिधानं नामैकादशं पर्व ॥११॥
सुनकर ही लोग उन्हें प्रणाम करने लगते हैं, अनेक विषयोंको प्राप्त करानेवाले सुन्दर स्त्रियोंके समूह उन्हें प्राप्त होते रहते हैं, आश्चर्यके निवासभूत अनेक ऐश्वर्य उनके घर उत्पन्न होते हैं और कहाँ तक कहा जाये सूर्य भी उनके प्रभावसे शीतल हो जाता है इसलिए सबको पुण्यबन्धके लिए प्रयत्न करना चाहिए ।।३८३॥ इस प्रकार आर्षनामसे प्रसिद्ध रविषेणाचार्यके द्वारा कथित पद्मचरितमें राजा मरुत्वके यज्ञके
विध्वंसका वर्णन करनेवाला ग्यारहवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥११॥
१. निखिलविषयप्राप्यसङ्घो म. । २. यात्राद् म. ।
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