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पचपुराणे तन्त्र मन्त्री जगादैकः कन्येयं भरताधिपे । योज्यतां रक्षसामीश इति मे 'निश्चितं मतम् ॥२७॥ रावणं स्वजनं प्राप्य सर्वविद्याधराधिपम् । जगत्यां सागरान्तायां प्रमावस्ते भ्रमिष्यति ॥२८॥ अथवेन्द्रजिते यूने मेघनादाय वा नृप । दीयतामेवमप्येष रावणस्तत्र बान्धवः ॥२९॥ अर्थतन्न तवाभीष्टं ततः कन्या स्वयंवरा । विमुच्यतां न बैरी ते तथा सत्युपजायते ॥३०॥ इस्युक्त्वा विरतिं याते मन्त्रिण्यमरसागरे । विद्वान्सुमतिसंज्ञाको जगाद वचनं स्फुटम् ॥३१॥ दशास्योऽनेकपत्नीको महाहवारगोचरः । इमां प्राप्यापि नो तस्य प्रीति रस्मास जायते ॥३२॥ षोडशाब्दसमानेऽपि सत्याकारेऽस्य भोगिनः । उत्कृष्टमेव विज्ञेयं नयः परमतेजसः ॥३३॥ इन्द्रजिन्मेघवाहाय सति दाने प्रकुप्यति । मेघवाहस्तथा तस्मै तस्मात्तावपि नो वरौ ॥३४॥ श्रीषेणसुतयोरासीद् गणिकाथं तदा महत् । पितृदुःखकर युद्धं स्त्रीहेतोः किं न वेष्यते ॥३५॥ वाक्यं ततोऽनुमन्येदं नाम्नां ताराधरायणः । जगाद वचनं चैनं मावेन तमानसः ॥३६॥ जयाद्रिदक्षिणं स्थानं कनकं नाम विद्यते । राजा तत्र हिरण्यामः सुमनास्तस्य भामिनी ॥३७॥ अभवत्तनयस्तस्य नाम्ना सौदामिनीप्रमः । महता यशसा कान्स्या वयसा चातिशोमनः ॥३८॥
सर्वविद्याकलापारो लोकनेत्रमहोत्सवः । गुणैरनुपमश्चेष्टारञ्जिताखिलविष्टपः ॥३९॥ तब एक मन्त्रीने कहा कि यह कन्या भरत क्षेत्रके स्वामी राक्षसोंके अधिपति रावणके लिए दी जानी चाहिए ऐसा मेरा निश्चित मत है ॥२७॥ समस्त विद्याधरोंके स्वामी रावण जैसे स्वजनको पाकर आपका प्रभाव समुद्रान्त पृथिवीमें फैल जायेगा ॥२८॥ अथवा हे राजन् ! रावणके पुत्र इन्द्रजित् और मेघनाद तरुण हैं सो इन्हें यह कन्या दीजिए क्योंकि उन्हें देनेपर भी रावण स्वजन होगा ।।२९।। अथवा यह बात भी आपको इष्ट नहीं है तो फिर कन्याको स्वयं पति चुननेके लिए छोड़ दीजिए अर्थात् इसका स्वयंवर कीजिए। ऐसा करनेसे आपका कोई वैरी नहीं बन सकेगा ॥३०॥ इतना कहकर जब अमरसागर मन्त्री चुप हो गया तब सुमति नामका दूसरा विद्वान् मन्त्री स्पष्ट वचन बोला ॥३१॥
उसने कहा कि रावणके अनेक पत्नियां हैं, साथ ही वह महाअहंकारी है इसलिए इसे पाकर भी उसकी हम लोगों में प्रीति उत्पन्न नहीं होगी ॥३२॥ यद्यपि इस परम प्रतापी भोगी रावणका आकार सोलह वर्षके पुरुषके समान है तो भी उसकी आयु अधिक तो है ही ॥३३।। अतः इसके लिए कन्या देना में उचित नहीं समझता । दूसरा पक्ष इन्द्रजित् और मेघनादका रखा सो यदि मेघनादके लिए कन्या दी जाती है तो इन्द्रजित् कुपित होता है और इन्द्रजितके लिए देते हैं जो मेघनाद कुपित होता है इसलिए ये दोनों वर भी ठीक नहीं हैं ॥३४॥ पहले राजा श्रीषेणके पुत्रोंमें एक गणिकाके निमित्त पिताको दुःखी करनेवाला बड़ा युद्ध हुआ था यह सुननेमें आता है सो ठीक ही है क्योंकि स्त्रीका निमित्त पाकर क्या नहीं होता है. ? ॥३५॥
तदनन्तर जिसका हृदय सदभिप्रायसे युक्त था ऐसा ताराधरायण नामका मन्त्री, पूर्व मन्त्रीके वचनोंकी अनुमोदना कर इस प्रकारके वचन बोला ||३६।। उसने कहा कि विजयधिपर्वतकी दक्षिण श्रेणीमें एक कनकपुर नामका नगर है। वहाँ राजा हिरण्याभ रहते हैं उनकी रानीका नाम सुमना है ॥३७।। उन दोनोंके विद्युत्प्रभ नामका पुत्र उत्पन्न हुआ है जो बहुत भारी यश, कान्ति और अवस्थासे अत्यन्त सुन्दर है ॥३८॥ वह समस्त विद्याओं और कलाओंका पारगामी है, लोगोंके नेत्रोंका मानो महोत्सव ही है, गुणोंसे अनुपम है, और अपनी चेष्टाओंसे १. निश्चयम्-म. । २. अथ तं न क., ख., म., ब., ज.। ३. याति म.। ४. प्रीतिरस्यां सुजायते ख.। ५. अधिकमेव । ६. तारान्धरायणः क., म.। ७. स्वेन क., म., ब., ज.। ८. हतमानसः ब.। हृतमानसः । क., म., ज।
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