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पद्मपुराणे पादयोस्तावदाकृष्य दूतोऽन्यैः सुखलीकृतः । क्षिप्रं निष्कासितो गेहाद् धिग् भृत्यं दुःखनिर्मितम् ॥१९२१. गत्वा वैश्रवणायेयमवस्था तेन वेदिता । दशग्रीवाद्विनिष्क्रान्ता वाणी चास्यन्तदुःकथा ॥१९३॥ तयेन्धनविभूत्यास्य कोपवह्निः समुत्थितः । अमात इव सोऽनेन भृत्यचेतःसु वण्टितः ॥१९४॥ अचीकरच्च संग्रामसंज्ञां परुषतूर्यतः । रणसजा यया सद्यो मणिभद्रादयः कृताः ॥१९५॥ निरेद् वैश्रवणो योद्धयक्षयोधैस्ततो वृतः । विलसत्सायकप्रासचक्राद्यायुधपाणिभिः ॥१९६॥ स निर्भराञ्जनक्षोणीधराकारैर्मतङ्गजैः । संध्यारागसमाविष्टमेधाकारैर्महारथैः ।।१९७।। प्रस्फुरच्चामरैरश्वैर्जयनिर्जवतोऽनिलम् । सुरावाससमाकारैर्विमानैदूरमुन्नतैः ॥१९८॥ लद्धिताश्वविमानेमस्यन्दनेनोरुतेजसा । पादातेन च संघट्टमीयुषार्णवराविणा ।।१९९।। पूर्वमेव च निष्क्रान्तो दशग्रीवो महाबलः । भानुकर्णादिभिः सार्धं स्थितो रणमहोत्सवः ॥२०॥ गुञ्जाख्यस्य ततो मूर्धिन पर्वतस्य तयोरभूत् । संपातः सेनयोः शस्त्रसंपातोद्गतपावकः ॥२०१॥ क्वणनेन ततोऽसीनां सप्तीनां हेषितेन च । पदातीनां च नादेन गजानां गर्जितेन च ।।२०२॥ अन्योऽन्यसंगमोदभूतरथशब्देन चारुणा । तूर्यस्वरेण चोग्रेण शीत्कारेण च पत्रिणाम् ।।२०३।। ध्वनिः कोऽपि विमिश्रोऽभूत् प्रतिनादेन बोधितः । व्याप्नुवन् रोदसी कुर्वन् भटानां मदमुत्तमम् ।।२०४॥ कृतान्तवन्दनाकारैश्चक्रः स्फुरितधारकैः । खड्गैस्तद्रसनाकारै रक्तसीकरवर्षिमिः ॥२०५।।
तद्रोमसंनिभैः कुन्तैस्तत्तर्जन्युपमैः शरैः । परिषैस्तद्भुजाकारै स्तन्मुष्टिसममुद्गरैः ॥२०६।। ही जिसकी रचना हुई है ऐसे भृत्यको धिक्कार हो ।।१९१-१९२॥ दूतने जाकर अपनी यह सब दशा वैश्रवणको बतला दी और दशाननके मुखसे निकली वह अभद्रवाणी भी सुना दी ॥१९३॥ दूतके वचनरूपी इंधनसे वैश्रवणको क्रोधाग्नि भभक उठी। इतनी भभकी कि वैश्रवणके मनमें मानो समा नहीं सकी इसलिए उसने भृत्यजनोंके चित्तमें बाँट दी अर्थात् दूतके वचन सुनकर वैश्रवण कुपित हुआ और साथ ही उसके भृत्य भी बहुत कुपित हुए ।।१९४॥ उसने तुरहीके कठोर शब्दोंसे युद्धकी सूचना करवा दी जिससे मणिभद्र आदि योद्धा शीघ्र ही युद्ध के लिए तैयार हो गये ॥१९५।। तदनन्तर जिनके हाथोंमें कृपाण, भाले तथा चक्र आदि शस्त्र सुशोभित हो रहे थे ऐसे यक्षरूपी योधाओंसे घिरा हुआ वैश्रवण युद्धके लिए निकला ॥१९६।। इधर अंजनगिरिका आकार धारण करनेवाले-बड़े-बड़े काले हाथियों, सन्ध्याकी लालिमासे युक्त मेघोंके समान दिखनेवाले बड़े-बड़े रथों, जिनके दोनों ओर चमर ढुल रहे थे तथा जो वेगसे वायुको जीत रहे थे ऐसे घोड़ों, देवभवनके समान सुन्दर तथा ऊँची उड़ान भरनेवाले विमानों, तथा जो घोड़े, विमान, हाथी और रथसभीको उल्लंघन कर रहे थे अर्थात् इन सबसे आगे बढ़कर चल रहे थे, जिनका प्रताप बहत भारी था, जो अधिकताके कारण एक दूसरेको धक्का दे रहे थे तथा समुद्रके समान गरज रहे थे ऐसे पैदल सैनिकों और भानुकर्ण आदि भाइयोंके साथ महाबलवान् दशानन, पहलेसे ही बाहर निकलकर बैठा था। युद्धका निमित्त पाकर दशाननके हृदयमें बड़ा उत्सव-उल्लास हो रहा था ॥१९७
तदनन्तर गुंज नामक पर्वतके शिखरपर दोनों सेनाओंका समागम हुआ। ऐसा समागम कि जिसमें शस्त्रोंके पड़नेसे अग्नि उत्पन्न हो रही थी ॥२०१॥ तदनन्तर तलवारोंकी खनखनाट, घोड़ोंकी हिनहिनाहट, पैदल सैनिकोंकी आवाज, हाथियोंको गर्जना, परस्परके समागमसे उत्पन्न रथोंकी सुन्दर चीत्कार, तुरहीकी बुलन्द आवाज और बाणोंकी सनसनाहटसे उस समय कोई मिश्रितविलक्षण ही शब्द हो रहा था। उसकी प्रतिध्वनि आकाश और पृथिवीके बीच गूंज रही थी तथा योद्धाओंमें उत्तम मद उत्पन्न कर रही थी २०२-२०४। इस तरह जिनका आकार यमराजके
१. -र्मुखलक्षितः म.। २. सोतेन म.। ३. तद्दशनाकारैः क.। ४. कुम्भैः म.। ५. तत्तर्जन्योपमैः म. । ६. तनुमुष्टिभिर्मुद्गरैः म.।
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