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पद्मपुराणे सर्वबान्धवयुक्तेन तेन स्वर्गसमं पुरम् । क्षणात्तुङ्गप्रमोदेन रचितं गिरिमूर्द्धनि ॥५१९।। अभिधानं कृतं चास्य निजमेव यशस्विना । यतोऽद्यापि पृथिव्यां तत् किष्किन्धपुरमुच्यते ॥५२०॥ पर्वतोऽपि स किष्किन्धः प्रख्यातस्तस्य संगमात् । पूर्व तु मधुरित्यासीन्नाम तस्य जगद्गतम् ॥५२॥ सम्यग्दर्शनयुक्तोऽसौ जिनपूजासमुद्यतः । भुञ्जानः परमान् भोगान् सुखेन न्यवसचिरम् ॥५२२॥ तस्माच्च संभवं प्राप श्रीमालायां सुतद्वयम् । ज्येष्ठः सूर्यरजा नाम ख्यातो' यज्ञरजास्तथा ॥५२३।। सुता च सूर्यकमला जाता कमलकोमला । यया विद्याधराः सर्वे शोभया विक्लवीकृताः ॥५२४॥ अथ मेघपुरे राजा मेरुर्नाम नभश्चरः । मघोन्यां तेन संभूतो मृगारिदमनः सुतः ।।५२५।। तेन पर्यटता दृष्टा किष्किन्धतनयान्यदा । तस्यामुत्कण्ठितो लेभे न स नक्तंदिवा सुखम् ॥५२६॥ अभ्यर्थिता सुहृद्भिः सा तदर्थ सादरैस्ततः । संप्रधार्य समं देव्या दत्ता किष्किन्धभूभृता ॥५२७॥ निवृत्तं च विधानेन तयोर्वीवाहमङ्गलम् । किष्किन्धनगरे रम्ये ध्वजादिकृतभूषणे ॥५२८॥ प्रतिगच्छन् स तामूवा न्यवसत्कर्णपर्वते । कर्णकुण्डलमेतेन नगरं तत्र निर्मितम् ॥५२९॥ अलङ्कारपुरेशस्य सुकेशस्याथ सूनवः । इन्द्राण्या जन्म संप्रापुः क्रमेण पुरुविक्रमाः ॥५३०॥
अमीषां प्रथमो माली सुमाली चेति मध्यमः । कनीयान् माल्यवान् ख्यातो विज्ञानगुणभूषणः ।।५३१।। उतरा ॥५१८।। समस्त बान्धवोंसे युक्त, भारी हर्षको धारण करनेवाले राजा किष्किन्धने पर्वतके शिखरपर क्षण-भरमें स्वर्णके समान नगरकी रचना की ||५१९|| जो अपना नाम था यशस्वी किष्किन्धने वही नाम उस नगरका रखा। यही कारण है कि वह पृथिवीमें आज भी किष्किन्धपुर कहा जाता है ।।५२०॥ पहले उस पर्वतका 'मधु' यह नाम संसारमें प्रसिद्ध था परन्तु अब किष्किन्धपुरके समागमसे उसका नाम भी किष्किन्धगिरि प्रसिद्ध हो गया ॥५२१॥ सम्यग्दर्शनसे सहित तथा जिनपूजामें उद्यत रहनेवाला राजा किष्किन्ध उत्कृष्ट भोगोंको भोगता हुआ चिर काल तक उस पर्वतपर निवास करता रहा ॥५२२॥ तदनन्तर राजा किष्किन्ध और रानी श्रीमाल दो पुत्र उत्पन्न हुए। उनमें बड़ेका नाम सूर्यरज और छोटेका नाम यक्षरज था ॥५२३॥ इन दो पुत्रोंके सिवाय उनके कमलके समान कोमल अंगको धारण करनेवाली सूर्यकमला नामकी पुत्री भी उत्पन्न हुई। वह पुत्री इतनी सुन्दरी थी कि उसने अपनी शोभाके द्वारा समस्त विद्याधरोंको बेचैन कर दिया था ॥५२४॥
अथानन्तर मेघपुरनगरमें मेरु नामका विद्याधर राजा राज्य करता था। उसकी मघोनी नामकी रानीसे मृगारिदमन नामका पुत्र उत्पन्न हुआ ॥५२५।। एक दिन मृगारिदमन अपनी इच्छानुसार भ्रमण कर रहा था कि उसने किष्किन्धकी पूत्री सूर्यकमलाको देखा। उसे देख मगारिदमन इतना उत्कण्ठित हुआ कि वह न तो रातमें सुख पाता था और न दिनमें ही ॥५२६॥ तदनन्तर मित्रोंने आदरके साथ उसके लिए सूर्यकमलाकी याचना की और राजा किष्किन्धने रानी श्रीमालाके साथ सलाह कर देना स्वीकृत कर लिया ॥५२७।। ध्वजा-पताका आदिसे विभूषित, महामनोहर किष्किन्ध नगर में विधिपूर्वक मृगारिदमन और सूर्यकमलाका विवाह-मंगल पूर्ण हुआ ॥५२८।। मृगारिदमन सूर्यकमलाको विवाहकर जब वापस जा रहा था तब वह कर्ण नामक पर्वतपर ठहरा । वहाँ उसने कर्णकुण्डल नामका नगर बसाया ॥५२९॥
अलंकारपुरके राजा सुकेशकी इन्द्राणी नामक रानीसे क्रमपूर्वक तीन महाबलवान् पुत्रोंने जन्म प्राप्त किया ||५३०।। उनमें-से पहलेका नाम माली, मझलेका नाम सुमाली और सबसे छोटेका नाम माल्यवान् था । ये तीनों ही पुत्र परमविज्ञानी तथा गुणरूपी आभूषणोंसे सहित थे ।।५३१॥
१. ख्यातोऽक्षरजा म.। २. संचार्य क. । ३. तामूढा म. । ४. मध्यगाः म.।
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