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पद्मपुराणे आवर्तविघटाम्भोदा उत्कटस्फुटदुर्ग्रहाः । तटतोयावलीरत्नद्वीपाश्चाभान्ति राक्षसैः ॥३७३॥ नानारत्नकृतोद्योता हेममित्तिप्रभासुराः । राक्षसानां बभूवुस्ते निवासाः क्रीडनार्थिनाम् ॥३७॥ तत्रैव खेचरैरेमिट्टीपान्तरसमाश्रितैः । संनिवेशा महोत्साहैर्नगराणां प्रकल्पिताः ॥३७५॥ ततस्तौ पुत्रयो राज्यं दत्वा दीक्षां समाश्रितौ । महातपोधनौ भूत्वा पदं यातौ सनातनम् ॥३७६।। एवं महति संताने प्रवृत्ते घानवाहने । महापुरुषनिब्यूढराज्यप्राव्रज्यवस्तुनि ॥३७७॥ रक्षसस्तनयो जातो मेनोवेगाङ्कधारिणः । राक्षसो नाम यस्यायं नाम्नां वंशः प्रकीर्त्यते ॥३७८।। तस्यादित्यगति तो बृहत्कीर्तिश्च नन्दनः । योषायां सुप्रभाख्यायां रविचन्द्रसमप्रभौ ॥३७९॥ वृषभौ तौ संमासज्य राज्यस्यन्दनजे मरे । श्रमणत्वं समाराध्य देवलोकं समाश्रितः ॥३८०॥ जाता सदनपद्माख्या भायर्यादित्यगतेवरा । बृहत्कोतिस्तथा पुष्पनखोत परिकीर्तिता ॥३८॥ अथादित्यगतेः पुत्रो नाम्ना भीमप्रभोऽभवत् । सहस्रं यस्य पत्नीनामभदेवाङ्गनारुचाम् ॥३८२।। आसीदष्टोत्तरं तस्य पुत्राणां शतमूर्जितम् । स्तम्भैरिव निजं राज्यं धारित यैः समन्ततः ॥३८३॥ आत्मजाय ततो राज्यं वितीर्य ज्यायसे प्रभुः। भीमप्रभः प्रवव्राज प्राप्तश्र परमं पदम् ॥३८॥ देवेन राक्षसेन्द्रेण राक्षसद्वीपमण्डले । कृतानुकम्पना ऊषुः सुखेनाम्बरगामिनः ॥३८५।। रक्षन्ति रक्षसांद्वीपं पुण्यंन परिरक्षिताः । राक्षसा नामतो द्वीपं प्रसिद्धं तदुपागतम् ॥३८६।
इसी प्रकार १ आवर्त, २ विघट, ३ अम्भोद, ४ उत्कट, ५ स्फुट, ६ दुर्ग्रह, ७ तट, ८ तोय, ९ आवली और रत्नद्वीप ये दस नगर भानुरक्षके पुत्रोंने बसाये थे ॥३७३।। जिनमें नाना रत्नोंका उद्योत फैल रहा था तथा जो सुवर्णमयी दीवालोंके प्रकाशसे जगमगा रहे थे ऐसे वे सभी नगर क्रीड़ाके अभिलाषी राक्षसोंके निवास हुए थे ।।३७४॥ वहींपर दूसरे द्वीपोंमें रहनेवाले विद्याधरोंने बड़े उत्साहसे अनेक नगरोंकी रचना की थी ॥३७५॥
अथानन्तर-अमररक्ष और भानुरक्ष दोनों भाई, पुत्रोंको राज्य देकर दीक्षाको प्राप्त हुए और महातमरूपी धनके धारक हो सनातन सिद्ध पदको प्राप्त हुए ॥३७६।। इस प्रकार जिसमें बड़ेबड़े पुरुषों द्वारा पहले तो राज्य पालन किया गया और तदनन्तर दीक्षा धारण की गयो ऐसी राजा मेघवाहनकी बहुत बड़ी सन्तानकी परम्परा क्रमपूर्वक चलती रही ॥३७७|| उसी सन्तान-परम्परामें एक मनोवेग नामक राक्षसके, राक्षस नामका ऐसा प्रभावशाली पुत्र हुआ कि उसके नामसे यह वंश ही राक्षस वंश कहलाने लगा ।।३७८॥ राजा राक्षसके सुप्रभा नामकी रानी थी, उससे उसके आदित्यगति और बृहत्कीर्ति नामके दो पुत्र हुए। ये दोनों हो पुत्र सूर्य और चन्द्रमाके समान कान्तिसे यक्त थे॥३७९॥ राजा राक्षस, राज्यरूपी रथका भार उठानेमें वषभके समान उन दोनों पत्रों संलग्न कर तप धर स्वर्गको प्राप्त हुए ॥३८०॥ उन दोनों भाइयोंमें बड़ा भाई आदित्यगति राजा था और छोटा भाई बृहत्कीर्ति युवराज था। आदित्यगतिकी स्त्रीका नाम सदनपद्मा था और बृहत्कीर्तिको स्त्री पुष्पनखा नामसे प्रसिद्ध थी ॥३८१॥ आदित्यगतिके भीमप्रभ नामका पुत्र हुआ जिसकी देवांगनाओंके समान कान्तिवाली एक हजार स्त्रियाँ थीं ॥३८२।। उन स्त्रियोंसे उसके एक सौ आठ बलवान् पुत्र हुए थे। ये पुत्र स्तम्भोंके समान चारों ओरसे अपने राज्यको धारण किये थे ॥३८३।। तदनन्तर राजा भीमप्रभने अपने बड़े पुत्रके लिए राज्य देकर दीक्षा धारण कर ली और क्रमसे तपश्चरण कर परमपद प्राप्त कर लिया ।।३८४॥ इस प्रकार राक्षस देवोंके इन्द्र भीम-सुभीमने जिनपर अनुकम्पा की थी ऐसे मेघवाहनकी वंश-परम्पराके अनेक विद्याधर राक्षसद्वीपमें सुखसे निवास करते रहे ॥३८५।। पुण्य जिनकी रक्षा कर रहा था ऐसे राक्षसवंशी विद्याधर चूंकि उस राक्षसजातीय देवोंके १. राक्षसम् म. । २. यवोवेगाङ्गधारितः क.। मनोवेगाङ्गधारिणः म.। ३. तो म.। ४. समासाद्य ख. । ५. राक्षसो ख.।
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