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पद्मपुराणे उदरस्थकिशोराणां जवायेव प्रभञ्जनम् । स्वच्छन्दमापिबन्तीनां वडवानां गणैश्चितः ॥२६॥ [युग्मम् चरद्भिहससंघातैर्घनैर्जनगुणैरिव । रवेणाकृष्टचेतोभिरत्यन्तधवलः क्वचित् ॥२७॥ संगीतस्वनसंयुक्तैर्मयूररवमिश्रितैः । यस्मिन्मुरजनिर्घोषैर्मुखरं गगनं सदा ॥२८॥ शरन्निशाकरश्वेतवृत्तर्मुक्ताफलोपमैः । आनन्ददानचतुरैर्गुणवद्भिः प्रसाधितः ॥२९॥ तर्पिताध्वगसंघातैः फलैर्वरतरूपमैः । महाकुटुम्बिभिनित्यं प्राप्तोऽभिगमनीयताम् ॥३०॥ सारङ्गमृगसद्गन्धमृगरोमभिरावृतैः । हिमवत्पाददेशीयः कृतस्थैर्यो महत्तरैः ॥३१॥ हताः कुदृष्टयो यस्मिन् जिनप्रवचनाञ्जनैः । पापकक्षं च निर्दग्धं महामुनितपोऽग्निभिः ॥३२॥ तत्रास्ति सर्वतः कान्तं नाम्ना राजगृहं पुरम् । कुसुमामोदसुभगं भुवनस्येवं यौवनम् ॥३३॥ महिषीणां सहस्रैर्यत्कुकमाञ्चितविग्रहः । धर्मान्तःपुरनिर्भासं धत्ते मानसकर्षणम् ॥३४॥
मरुदुद्धृतचमरैर्बालव्यजनशोभितैः । प्रान्तैरमरराजस्य च्छायां यदवलम्बते ।।३५।। पान कर रही हैं मानो अपने उदरमें स्थित बच्चोंको गतिके वेगकी शिक्षा ही देनी चाहती हों ऐसी घोड़ियोंके समूहसे वह देश व्याप्त हो ।।२५-२६।। जो मनुष्योंके बहुत भारी गुणोंके समूहके समान जान पड़ते हैं तथा जो अपने शब्दसे लोगोंका चित्त आकर्षित करते हैं ऐसे चलते-फिरते हंसोंके झुण्डोंसे वह देश कहीं-कहीं अत्यधिक सफेद हो रहा है ।।२७।। संगीतके शब्दोंसे युक्त तथा मयूरोंके शब्दसे मिश्रित मृदंगोंकी मनोहर आवाजसे उस देशका आकाश सदा शब्दायमान रहता है ॥२८॥ जो शरद् ऋतुके चन्द्रमाके समान श्वेतवृत्त अर्थात् निर्मल चरित्रके धारक हैं ( पक्षमें श्वेतवर्ण गोलाकार हैं ), मुक्ताफलके समान हैं, तथा आनन्दके देने में चतुर हैं ऐसे गुणी मनुष्योंसे वह देश सदा सुशोभित रहता है ॥२९॥ जिन्होंने आहार आदि की व्यवस्थासे पथिकोंके समूहको सन्तुष्ट किया है तथा जो फलोंके द्वारा श्रेष्ठ वृक्षोंके समान जान पड़ते हैं ऐसे बड़े-बड़े गृहस्थोंके कारण उस देशमें लोगोंका सदा आवागमन होता रहता है ॥३०॥ कस्तूरी आदि सुगन्धित द्रव्य तथा भाँति-भाँतिके वस्त्रोंसे वेष्टित होनेके कारण जो हिमालयके प्रत्यन्त पर्वतों (शाखा) के समान जान पड़ते हैं ऐसे बड़े-बड़े लोग उस देशमें निवास करते हैं ॥३१॥ उस देशमें मिथ्यात्वरूपी दृष्टिके विकार जैनवचनरूपी अंजनके द्वारा दूर होते रहते हैं और पापरूपी वन महा-मुनियोंकी तपरूपी अग्निसे भस्म होता रहता है ॥३२॥
____ उस मगध देशमें सब ओरसे सुन्दर तथा फूलोंको सुगन्धिसे मनोहर राजगृह नामका नगर है जो ऐसा जान पड़ता है मानो संसारका यौवन ही हो ॥३३॥ वह राजगृह नगर धर्म अर्थात् यमराजके अन्तःपुरके समान सदा मनको अपनी ओर खींचता रहता है क्योंकि जिस प्रकार यमराजका अन्तःपुर केशरसे युक्त शरीरको धारण करनेवाली हजारों महिषियों अर्थात् भैंसोंसे युक्त होता है उसी प्रकार वह राजगृह नगर भी केशरसे लिप्त शरीरको धारण करनेवाली हजारों महिषियों अर्थात् रानियोंसे सुशोभित है। भावार्थ-महिषी नाम भैंसका है और जिसका राज्याभिषेक किया गया ऐसी रानीका भी है। लोकमें यमराज महिषवाहन नामसे प्रसिद्ध हैं इसलिए उसके अन्तःपुरमें महिषोंकी स्त्रियों-महिषियोंका रहना उचित ही है और राजगृह नगरमें राजाकी रानियोंका सद्भाव युक्तियुक्त ही है ॥३४॥ उस नगरके प्रदेश जहाँ-तहाँ बालव्यजन अर्थात् छोटे-छोटे पंखोंसे सुशोभित थे और जहाँ-तहाँ उनमें मरुत अर्थात् वायुके द्वारा चमर कम्पित हो रहे थे इसलिए वह नगर इन्द्रकी शोभाको प्राप्त हो रहा था क्योंकि इन्द्रके समीपवर्ती प्रदेश भी बालव्यजनोंसे सुशोभित होते हैं और उनमें मरुत् अर्थात् देवोंके १. पुरज म. । २. प्रसाधितं ख. । ३. भुवनस्यैव म. ।
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