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पपुराणे पुष्पान्तकसमावेशं तनयस्य सुमालिनः । कैकस्या सह संयोगं चारुस्वप्नावलोकनम् ॥६॥ दशाननस्य प्रजनि विद्यानां समुपासनम् । अनावृतस्य संक्षोभमागमं च सुमालिनः ॥१२॥ मन्दोदर्याः परिप्राप्तिं कन्यकानां निरीक्षणम् । चेष्टितैर्भानुकर्णस्य कोपं वैश्रवणोद्भवम् ॥६३॥ यक्षराक्षससंग्रामं धनदस्य तपस्यनम् । लङ्कागमं दशास्यस्य प्रश्न प्रत्न] चैत्यावलोकनम् ॥६॥ श्रीमतो हरिषेणस्य माहात्म्यं पापनाशनम् । त्रिजगगषणाभिख्य द्विरदेन्द्र विलोकनम् ॥६५॥ यमस्थानच्युति चार्करजः किष्किन्धसंगमम् । चोरणं कैकसेय्याश्च खरालङ्कारसंश्रयम् ॥६६॥ अनुराधामहादुःखं चन्द्रोदरवियोगतः । विराधितपुरभ्रंशं सुग्रीवश्रीसमागमम् ॥६७।। वाले प्रव्रजनं क्षोभमष्टापदमहीभृतः । सुग्रीवस्य सुताराया लाभं साहसगामिनः ॥६॥ संतापं विजया द्रिगमनं रावणस्य च । ..... ........................॥६९।। अनरण्यसहस्रांशुवैराग्यं यज्ञनाशनम् । मधुपर्वभवाख्यातमुपरम्माभिमाषणम् ॥७॥ विद्यालार्म महेन्द्रस्य राज्यलक्ष्मीपरिक्षयम् । दशास्यमेरुगमनं पुनश्च विनिवर्तनम् ॥७॥ अनन्तवीर्यकैवल्यं दशास्यनियमक्रियाम् । हनूमतः समुत्पत्तिं कपिकेतोर्महात्मनः ॥७२॥ अष्टापदे महेन्द्रेण प्रह्लादस्याभिभाषणम् । वायोः कोपं प्रसादं च तंजायाप्रजनोज्झने ॥७३॥ दिगम्बरेण कथनं हनूमत्पूर्वजन्मनः । सूतिं हनूरुहप्राप्ति प्रतिसूर्येण कारिताम् ॥७॥ नामक नगर बसाना, कैकसीके साथ उसका संयोग होना, और केकसीका शुभ स्वप्नोंका देखना ॥६१।। रावणका उत्पन्न होना और विद्याओंका साधन करना, अनावृत नामक देवको क्षोभ होना तथा सुमालीका आगमन होना ॥६२॥ रावणको मन्दोदरीकी प्राप्ति होना, साथ ही अन्य अनेक कन्याओंका अवलोकन होना और भानुकर्णकी चेष्टाओंसे वैश्रवणका कुपित होना ॥६३॥ यक्ष और राक्षस नामक विद्याधरोंका संग्राम, वैश्रवणका तप धारण करना, रावणका लंकामें आना और श्रेष्ठ चैत्यालयोंका अवलोकन करता ॥६४|| पापोंको नष्ट करनेवाला हरिषेण चक्रवर्तीका माहात्म्य, त्रिलोकमण्डन हाथी का अवलोकन ॥६५॥ यमनामक लोकषालको अपने स्थानसे च्युत करना तथा वानरवंशी राजा सूर्यरजको किष्किन्धापुरका संगम करना। तदनन्तर रावणकी बहन शूर्पणखाको खर-दूषण द्वारा हर ले जाना और उसीके साथ विवाह देना और खर-दूषणका पाताल लंका जाना ॥६६।। चन्द्रोदरका युद्ध में मारा जाना और उसके वियोगसे उसको रानी अनुराधाको बहुत दुःख उठाना, चन्द्रोदरके पुत्र विराधितका नगरसे भ्रष्ट होना तथा सुग्रीवको राज्यलक्ष्मीकी प्राप्ति होना ।।६७|| बालिका दीक्षा लेना, रावणका कैलासपर्वतको उठाना, सुग्रीवको सूताराकी प्राप्ति होना, सुताराकी प्राप्ति न होनेसे साहसगति विद्याधरको सन्तापका होना तथा रावणका विजयाधं पर्वतपर जाना ॥६८-६९|| राजा अनरण्य और सहस्ररश्मिका विरक्त होना, रावणके द्वारा यज्ञका नाश हुआ उसका वर्णन, मधुके पूर्वभवोंका व्याख्यान और रावणकी पुत्री उपरम्भाका मधुके साथ अभिभाषण ॥७०॥ रावणको विद्याका लाभ होना, इन्द्रकी राज्यलक्ष्मीका क्षय होना, रावणका सुमेरु पर्वतपर जाना और वहाँसे वापस लौटना ॥७१।। अनन्तवीर्य मुनिको केवलज्ञान उत्पन्न होना, रावणका उनके समक्ष यह नियम ग्रहण करना कि 'जो परस्त्री मुझे नहीं चाहेगी मैं उसे नहीं चाहूँगा', तदनन्तर वानरवंशी महात्मा हनुमान्के जन्म का वर्णन ||७२।। कैलास पर्वतपर अंजनाके पिता राजा महेन्द्रका पवनंजयके पिता राजा प्रह्लादसे यह भाषण होना कि हमारी पुत्रीका तुम्हारे पुत्रसे सम्बन्ध हो, पवनंजयके साथ अंजनाका विवाह, पवनंजयका कुपित होना । तदनन्तर चकवाचकवीका वियोग देख प्रसन्न होना, अंजनाके गर्भ रहना और सासु द्वारा उसका घरसे निकाला जाना ।।७३।। मुनिराजके द्वारा हनुमान्के पूर्वजन्मका कथन होना, गुफामें हनुमान्का जन्म होना १. प्रजनं म.। २. भिख्यं म.। ३. चारणं म.। ४. कैकसेयाश्च म. । ५. चन्द्रोदय म.। ६. जन्यनाशनम् क. । ७. नियमग्रहम् म. । ८. सज्जाया ख. । ९. 'सूतिस्तनूरहप्राप्ति प्रतिसूर्येण कारितम्' म.।
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