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प्रथमं पर्व
ऋषभस्य समुत्पत्तिमभिषेकं नगाधिपे । उपदेशं च विविधं लोकस्यातिविनाशनम् ॥४८॥ श्रामण्यं केवलोत्पत्तिमैश्वयं विष्टपातिगम् । सर्वामराधिपायानं निर्वाणसुखसंगमम् ।।४९।। प्रधनं बाहुबलिनो मरतेन समं महत् । समुद्भवं द्विजातीनां कुतीर्थिकगणस्य च ॥५०॥ इक्ष्वाकुप्रभृतीनां च वंशानां गुणकीर्तनम् । विद्याधरसमुद्भ तिं विद्युइंष्ट्रसमुद्भवम् ॥५१॥ उपसर्ग जयन्तस्य केवलज्ञानसंपदम् । नागराजस्य संक्षोभं विद्याहरणतर्जने ॥५२।। अजितस्यावतरणं पूर्णाम्बुदसुतासुखम् । विद्याधरकुमारस्य शरणं प्रतिसंश्रयम् ।।५३।। रक्षोनाथपरिप्राप्तिं रक्षोद्वीपसमाश्रयम् । सगरस्य समुद्र तिं दुःखदीक्षणनिवृती ॥५४॥ अतिक्रान्तमहारक्षोजन्मनः परिकीर्तनम् । शाखामृगध्वजानां च प्रज्ञप्तिमतिविस्तरात् ॥५५।। तडित्केशस्य चरितमुदधेरमरस्य च । किष्किन्धान्ध्रखगोत्पादं श्रीमालाखेचरागपम् ॥५६॥ वधाद् विजयसिंहस्य कोपं चाशनिवेगजम् । अन्ध्रकान्तमरिप्राप्तिं पुरस्य विनिवेशनम् ॥५७।। किष्किन्धपुरविन्यासं मधुपर्वतमूर्द्धनि । सुकेशनन्दनादीनां लङ्काप्राप्तिनिरूपणम् ॥५८॥ निर्धातवधहेतं च मालिनः संपदं पराम् । दक्षिणे विजयाधस्य भागे च रथनूपुरे ॥५९॥ पुरे जननमिन्द्रस्य सर्वविद्याभृतां विभोः । मालिनः पञ्चतावाप्तिं जन्म वैश्रवणस्य च ॥६०॥
एक बार कुशाग्र पर्वत-विपुलाचल के शिखरपर भगवान् महावीर स्वामी समवसरण सहित आकर विराजमान हुए। जिसमें राजा श्रेणिकने जाकर इन्द्रभूति गणधरसे प्रश्न किया। उस प्रश्नके उत्तरमें उन्होंने सर्वप्रथम युगोंका वर्णन किया। फिर कुलकरोंकी उत्पत्तिका वर्णन हुआ। अकस्मात द:ख के कारण देखनेसे जगतके जीवोंको भय उत्पन्न हआ इसका वर्णन किया ।।४५-४७।। भगवान् ऋषभदेवकी उत्पत्ति, सुमेरु पर्वतपर उनका अभिषेक और लोककी पीडाको नष्ट करनेवाला उनका विविध प्रकारका उपदेश बताया गया ॥४८॥ भगवान् ऋषभदेवने दीक्षा धारण की, उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ, उनका लोकोत्तर ऐश्वर्य प्रकट हुआ, सब इन्द्रोंका आगमन हुआ और भगवान्को मोक्ष-सुखका समागम हुआ ।।४९|| भरतके साथ बाहुबलीका बहुत भारी युद्ध हुआ, ब्राह्मणोंकी उत्पत्ति और मिथ्याधर्मको फैलानेवाले कुतीथियोंका आविर्भाव हुआ ।।५०।। इक्ष्वाकु आदि वंशोंकी उत्पत्ति, उनकी प्रशंसाका निरूपण, विद्याधरों की उत्पत्ति तथा उनके वंशमें विद्युदंष्ट्र विद्याधरके द्वारा संजयन्त मुनिको उपसर्ग हुआ। मुनिराज उपसर्ग सह केवलज्ञानी होकर निर्वाण
इस घटनासे धरणेन्द्रको विद्युदंष्ट्रके प्रति बहुत क्षोभ उत्पन्न हआ जिससे उसने उसकी विद्याएँ छीन ली तथा उसे बहुत भारी तजंना दी ।।५१-५२॥ तदनन्तर श्री अजितनाथ भगवान्का जन्म, पूर्णमेघ विद्याधर और उसकी पुत्रीके सुखका वर्णन, विद्याधर कुमारका भगवान् अजितनाथकी शरणमें आना, राक्षस द्वीपके स्वामी व्यन्तर देवका आना तथा प्रसन्न होकर पूर्णमेघके लिए राक्षस द्वीपका देना, सगर चक्रवर्तीका उत्पन्न होना, पुत्रोंका मरण सुन उसके दुःखसे उन्होने दीक्षाधारण की तथा निर्वाण प्राप्त किया ॥५३-५४।। पूर्णमेघके वंशमें महारक्षका जन्म तथा वानरवंशी विद्याधरोंकी उत्पत्तिका विस्तारसे वर्णन ।।५५।। विद्युत्केश विद्याधरका चरित्र, तदनन्तर उदधिविक्रम और अमरविक्रम विद्याधरका कथन, वानर-वंशियोंमें किष्किन्ध और अन्ध्रक नामक विद्याधरोंका जन्म लेना, श्रीमाला विद्याधरीका संगम होना ॥५६|| विजयसिंहके वधसे अशनिवेगको क्रोध उत्पन्न होना, अन्ध्रकका मारा जाना और वानरवंशियोंका मधुपर्वतके शिखरपर किष्किन्धपुर नामक नगर बसाकर उसमें निवास करना । सुकेशीके पुत्र आदिको लंकाकी प्राप्ति होना ।।५७-५८।। निर्घात विद्याधरके वधसे मालीको बहुत भारी सम्पदाका प्राप्त होना, विजयाध पर्वतके दक्षिणभाग सम्बन्धी रथनूपुर नगरमें समस्त विद्याधरोंके अधिपति इन्द्रनामक विद्याधरका जन्म लेना, मालीका मारा जाना और वैश्रवणका उत्पन्न होना ।।५९-१०|| सुमालीके पुत्र रत्नश्रवाका पुष्पान्तक १. सर्जने म. । २. निर्वृतिम् म. । ३. विस्तराम् म. । ४. पुरसुन्दरवेशनम् म. ।
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