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प्रमेयचन्द्रिका टीश श. ३ उ १ मोकानगर्या वीरसमवसरणम् १३ मोकानाम नगरी, "होत्या" आसीत् " वण्णओ" वर्गफ इति, औपपातिकस्प्रे चम्पानगरीवद विज्ञेय । “तीसे ण मोयाए नयरीए" तस्याः खल्ल मोकाया नगर्या "पहिया" वडि• "उत्तरपुरस्थिमे दिसिमाए" उत्तरपौरस्त्ये दिग्भागेउत्तरपूर्वदिगन्तराठे ईशानकोणे इत्यर्य " णदणे नाम चेइए होत्या" नन्दन नाम चैत्पम् व्यन्तरायतनम् 'होत्या' आसीत्, "वष्णमो" वर्णक -औपपातिक सो पूर्णभद्रचैत्यवत् वर्णन विज्ञेयम्, "तेण कालेण तेण समएण" तस्मिन् फाले तस्मिन् समये "सामी समोमदे" स्वामी समवस्त -महावीरमस समत्र सरणमभवत्, “परिसा निग्गच्छ” पर्पद् निर्गच्छति-जनन्दम् मभुवन्दनाय
टीकार्य-तेण फालेण तेण समएण' उस काल और उस समय में अर्थात् अवसर्पिणी काल के चौथे मारक में तथा वह समय दीयमान अवस्था को प्राप्त हो रहा था उस समय में 'मोया नाम नयरी' मोकानामफी नगरी 'होत्या' थी 'घण्णओ' इस नगरीका वर्णक-वर्णन जमा कि औपपातिक सम्र में चपानगरी का किया गया है,पैसा ही जानना चाहिये । 'तीसेण मोयाए नयरीए' उस मोका नगरी के 'पहिया' पाहर 'उत्तर पुरत्यिमे दिसीभाए' उत्तरपूर्वदिशाके अन्तराल में अर्थात् ईशानकोणमें-'णदणे णाम चेहए होत्या' नन्दन नामका चैत्य या, अर्थात्-न्यन्तरायतन था । 'घण्णमओ' इसका वर्णफ-वर्णन करने वाला पाठ भोपपातिक सूत्र में पूर्णमद्र चैत्यका वर्णन करने वाले पाठ के जैसा ही जानना चाहिये । 'तेर्ण कालेण तेण समएण' उसकाल और उस समय में 'सामी समोसटे' यहा भगवान महावीर का समव सरण-आगमन हुआ 'परिसा निग्गया' परिपद् प्रभु को वन्दना के
टीकार्य-" सेण कालेण तेण समएण" तो मन त समये मेट અવસર્પિકાળના ચોથા આરામાં તથા તે સમય જ્યારે પૂરો થવાની તૈયારીમાં હતા न्यारे- "मोया नाम नगरी" नामनी नगरी "स्था" . "वण्णमो"
પતિક સૂત્રમાં જેવું ૨૫ નગરીનું વર્ણન કર્યું છે, એવું જ તેનું વર્ણન સમજવું "सीसे ण मोयाए नयरीए" भी नगीना "पडिया" २ "उत्तरपरस्थिमे दिसीमाए" शानभा "णदणे णाम चेइए होस्था" नन्दन नामनु मे यत्य - व्यन्तरायतन eg "वष्णो " मोपाति: सूत्रमा भद्र ચેનું જેવું વર્ણન આવે છે, એવું જ તેનું વર્ણન સમજવું
"तेण कालेण तेण समपण" मेमने सभये "सामी समोसटे" स्या महावीर स्पाभी पार्या. "परिसा निमाया" भभुने १९ ४श्वान भार तथा