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भगवतिसूत्रे
छापा - तस्मिन् काले तस्मिन् समये मोका नाम नगरी मासीत्, वर्णकः, तस्या मोकाया नगर्या परि. उत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे नन्दन नाम चैत्यम् अभवत् वर्णकः, तस्मिन् काले तस्मिन् समये स्वामी समस्त पर्षद् निर्गच्छति, प्रतिगता पर्पत् ॥ तस्मिन् काळे, तस्मिन् समये, श्रमणस्य भगवतो महा वीरस्य द्वितीयोऽन्तेवासी अभिभूतिर्नाम अनगारी गौतमगोत्रः सप्तोत्सेधः,
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सूत्रार्थ - ( तेण काण तेण समर्पण) उस पाल में और उस समय में (मोया नाम नयरी होत्या) मोका नामकी नगरी धी (वण्णओ) वर्णक इसका वर्णन चम्पानगरी के वर्णनके समान जानना चाहिये । (तीसेण मोयाए नयरीए पहिया उतरपुरत्यिमे दिसीभाए णदणे नाम वेह होत्या) उस मोका नगरी के बाहर उत्तरपूर्वके दिग्भागमें अर्थात् ईशान कोण में नंदननामका एक चैश्य उद्यान धा । (चण्णओ) वर्णक-चम्पा नगरी के पूर्णभवत्य के वर्णन के समान इसका घर्णन जानना (तेर्ण काले तेण समएण सामी समोसटे) उस काल में और उस समयमें स्वामी महावीर प्रभु वहां पधारें( परिसा निग्गच्छइ) सभा निकलो (पडिगया परिसा) धमश्रवण कर सभा विसर्जित हो गई । (सेण कालेन तेणं समरण) उसकाल में और उस समय में (समणस्स भगवओ महावी रस्स दोच्चे अंतेवासी) श्रमण भगवान् महावीर के द्वितीय शिष्य ( अग्गिमूई नाम अणगारे गोयमगोप्तेण) अग्निभूति नामके अनगार थे, इनका गौतमगोत्र था (ससुस्सेहे) सात हाय का इनके शरीरका
सूत्रार्थ - ( तेण काळेण तेण समरण ) ते ठाणे अने ते सभये ( मोया नोम नयरी होत्या) भोम नामनी नगरी बता (वष्णभो) तेनु वासुन व्यधानगरी अभाले ४२. (तीसेण मोमाए नयरीए महिया उत्तरपुर स्थिमे दिसीमाए जदणे नाम घेइए होत्या) ते भोठा नगरीनी हा ईशान भूला नहन नाभे दैत्य तु (वष्णओ) पानगरीना भद्र गेत्यमेवु तेनु पार्थेन सभ तेण समरण) ते अजे भने ते समये (सामी समोसरे) भावी स्वाभीत्या पधार्या ( परिसा णिग्गच्छा) सिभिजवा अ४ ( परिगया परिसा ) મેપદેશ. સાંભળીને સભા વિર્જિન થઈ
( तेण कालेनं
( तेण काभ्रेण तप समरण ते जे भने ते समये (समणस्स भगवओो महावी रस्स दोघे अतेवासी) श्रभम् भगवान महावीरना भी शिष्य (अग्गिसूई नाम अणगारे गोयमगोते ण) अभिभूति नाभे अनुगार देता. तेथे गौतम गोत्रना बता (ससुस्सेहे ) तेमना शरीरनी या सात साथ हवी. ( जात्र पज्जुत्रासमाणे) असुना