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स्तोत्र रचकर मरकी की उपशांति की ।
यह गांव देलवाड़ा, उदयपुर से नाथद्वारा जाते समय बीच में १७ मील की दूरी पर है । दिन में १०-१२ मोटरें आती जाती हैं । पहले यहां ३०० जैन मंदिर थे, नगरी बहुत रमणीय थी, धर्मध्वजाओं की शोभा अपूर्व थी । इसका पूरा इतिहास विजयधर्मसूरीश्वर ने लिखा है । आज वहां ४ जैन मंदिर हैं । गांव में प्रवेश करते ही पहले श्री पार्श्वनाथ प्रभु का, समीप ही श्री महावीर स्वामी का मंदिर है । बाजार से सीधे राजमहल की तरफ जाते आदिनाथ प्रभु का मंदिर आता है, और बाजार को पार करके चौथा भी श्री आदिनाथ प्रभु का मंदिर आता है । इन चारों में से श्री महावीर स्वामी का मंदिर उपाश्रय में है, बाकी के तीनों मन्दिर बावन जिनालय के गंगनचुम्बी शिखरों वाले हैं | श्री आदिनाथ प्रभु के सब से बड़े मंदिर को खरतर वही कहते हैं । यह मंदिर बहुत ही भव्य, रमणीय व विशाल है । मूलनायकजी की प्रतिमाजी इतनी मनोहर है कि जिसका वर्णन लेखिनी नहीं कर सकती । परिकर की रचना श्री केशरियाजी के मंदिर के मूलनायकजी के सदृश है । श्वेतपाषाण की यह प्राचीन प्रतिमा जोड़ है । श्री पार्श्वनाथ जनालय की रचना भी वैसी हैं, प्रवेशद्वार के दाएं तरफ ऊपर एक छोटा मंदिर और है जिसमें भी मूल नायक श्री पार्श्वनाथजी ही हैं । इस मंदिर के नींचे एक भरा है जिसमें बहुत ही प्राचीन विशाल श्वेत पाषण की १६ प्रतिमाजी हैं । राज महल के समीप वाला मंदिर भी ऐसा ही विशाल है । हाय ! काल के विकराल काल से कौन बच सकता है, किसी समय