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अध्यात्म-कल्पद्रुम न अपने नाम के उपासरे बनवा, न अपने नाम के ग्रंथ भंडार या अलमारियां बनवा। परिग्रह की मूर्छा से तू बार बार जन्मेगा व मरेगा । अतः इस मूर्छा को दूर कर ।
धर्म के निमित्त से रखा हुवा परिग्रह
परिग्रहात्स्वीकृतधर्मसाधनाभिधानमात्राकिमु मूढ ! तुष्यसि । न वेत्सि हेम्नाप्यतिभारिता तरी, निमज्जत्यंगिनमंबुधौ द्रुतम् २५
अर्थ-हे मढ़ ! धर्म के साधनों को उपकरण आदि का नाम देकर स्वीकृत किए गए परिग्रह से तू क्यों खुश होता है ? क्या तू नहीं जानता है कि जहाज में अधिक भार चाहे सोने का भी लादा जाय तो वह भी बैठने वाले प्राणी को शीघ्र ही समुद्र में डुबा देता है ! ॥ २५ ॥ वशस्थ
विवेचन संसार रूपी समुद्र में से यतिपन रूप नाव के द्वारा आत्मा तर सकती है। यदि उस नाव में अधिक परिग्रह रूप भार अधिक भर दिया जाय तो वह नाव अवश्य डूबेगी। वह परिग्रह धर्म के नाम पर किया गया भी हो तो भी भार ही है। राग दशा का पोषण करने के लिए अनावश्यक ढंग से अधिक उपधि वस्त्र व पात्र रखना त्याज्य है। दवाइयों की शीशियां पोस्ट कार्ड, घड़ी, पेन और कोमती वस्तुएं रखना। कितना अशोभनीय है। आज इस प्रकार का परिग्रह बढ़ता जा रहा है जो डुबाने वाला है अतः सब त्याज्य है।
॥ २५ ॥