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मिथ्यात्वनिरोध-संवरोपदेश ३५५ (२) औदारिक मिश्र–पिछले भव से जीव अपने साथ तैजस कार्मण लाता है और वह औदारिक शरीर की यद्यपि शुरूपात की है तथापि निष्पत्ति नहीं हुई है तो वह औदारिक मिश्र कहलाता है।
(३) औदारिक--जिस शरीर के पुद्गल स्थूल एवं प्रायः अस्थि, मांस रुधिर और चरबीमय होते हैं वह औदारिक शरीर है। ..
(४) वैक्रियमिश्र-दृश्य होकर अदृश्य होना, भूचर होकर खेचर होना, बड़ा होकर छोटा होना, ऐसी अनेक तरह की क्रियाएं करने वाला सात धातुओं रहित शरीर ही वैक्रिय शरीर है। उसकी शुरूआत होकर भी समाप्ति न हुई हो वहां तक वैक्रिय मिश्र है। .
(५) वैक्रिय-ऊपर कहा हुवा शरीर जब पूर्ण हो जाता है तब वैक्रिय कहलाता है।
(६) आहारकमिश्र–चौदह पूर्व को जानने वाले महापुरुष, किसी सूक्ष्म शंका को निवारण करने के लिए केवली महाराज के पास भेजने के लिए जो शरीर रचते हैं उसकी समाप्ति पहले की अवस्था (वह शरीर केवल ज्योतिः स्वरूप होता है)। ___ (७) आहारक-ऊपर कहे हुए शरीर की संपूर्ण अवस्था ।
इन ऊपर बताए हुए सात प्रकार के शरीरों में से जीव का जिस संबंधी प्रयत्न हो उसे उस नाम का योग समझना जैसे हम अभी औदारिक और तैजस कार्मण के लिए प्रयत्न कर रहे हैं । तैजस और कार्मण दोनों सदा साथ रहने वाले