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अध्यात्म- कल्पद्रुम
३ ॥
काहु कु' फिरे है मन काहु न पावेगी चैन । विषय के उमंग रंग कछु न दूर सहे ॥ सोऊ ज्ञानी सोऊ ध्यानी सोऊ मेरे जिया प्रानी । जिने मन वश कियो वाही को सुजस है ॥ ४ ॥ विनय कहे सौ धनु याको मन छिन् छिन् । साईं साईं साईं साईं साईं में तिरस है ।। ५ ।।
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(३) ज्ञानविमल सूरिकृत वैराग्योपदेश पद्य
वालमिया रे विरथा जनम गमायो ।
परसंगत कर दस दिसि भटका, परसें प्रेम लगाया । परसें जाया, पर रंग भाया पर कुं भोग लगाया || वाल || १ ||
माटी खाना माटी पीना माटी में रम जाना ।
माटी चीवर माटी भूषण, माटी रंग सो भीना रे || वाल || २ ||
परदेशी से नातरा कीना माया में लपटाना । निधि संयम ज्ञानानंद अनुभव गुरु बिन नाहि लहाना रे ||३||