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अध्यात्म-कल्पद्रुम चौदह राजु उतंग तभ, लोक पुरुष संठान । तामें जीव अनादि तें भरमत हैं बिन ज्ञान ॥ ६ ॥ ज्ञान दीप तप तेल भर घर शोधे भ्रम छोर । या विध बिन निकसें नहीं पैठे पूरब चोर ॥ १० ॥
दलबल देई देवता मातपिता परिवार । मरती बिरियां जीव को कोई न राखन हार ॥ ११॥
जहां देह अपनी नहीं तहां न अपनो कोय । घर संपति पर परगट ये पर हैं परिजन लोय ॥ १२ ॥