Book Title: Adhyatma Kalpdrumabhidhan
Author(s): Fatahchand Mahatma
Publisher: Fatahchand Shreelalji Mahatma

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Page 492
________________ ( ४५१) हर मंजिल में अब साथ तेरे यह जितना डेरा-डांडा है। जर ६ दाम १० दिरमका भांडा है,बन्दूक सिपाह और खाँडा है। जब नारक ११ तन से निकलेगा, जो मुल्कों मुल्कों हांडा १२ है। फ़िर हांडा है न भांडा है, न हलवा है न मांडा है ॥ सब ठाठ ।। कुछ काम न आवेगा तेरे, यह लाल जमरद १३ सीमोजर १४; सब पूजी बाट में बिखरेगी जब आन बनेगी जान ऊपर । नौधत-नक्कारे-बान १५ निशां-दौलत१६ हशमत १७ फौज-लश्कर; क्या मसनद १८ तकिया-मुल्क-मका, क्या चौकी-कुरी- तख्त छतर ॥ क्यों जी पर बोझ उठाता है, इन गोनों १९ भारी भारी के; जब मौत लुटेरा आन पड़ा, फिर दूने है बेपारी के । क्या साज़ जड़ाऊ-जर-जेवर, क्या गोटे थान-किनारी के; क्या घोड़े जीन सुनहरी के, क्या हाथी लाल अमारी के ॥७॥ सव ठाठ . (८) मगरूर २० न हो तलवारों पर मत भूल भरोसे ढालों के; सब पटा तोड़के भागेंगे मुह देख अज़ल के भालों के। क्या डब्बे मोती-हीरों के क्या ढेर खजाने मालों के, क्या बुगाचे २१ तार-मुशज्जर २२ के, क्या तख्ते २३ शाल-दुशालों के ॥ क्या सख्त मकां बनवाता है, खम २४ तेरे तन का है पोला; तू ऊंचे कोट उठाता है, वहां तेरी गोर २५ ने मुह है खोला। क्या रेती-खंदक-रूंद बड़े, क्या बुर्ज-कंगूरा अनमोला; गढ़-कोट-रहनला २६ तोप-किला, क्या सीसादारू और गौला ॥ स.ठा-॥

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