Book Title: Adhyatma Kalpdrumabhidhan
Author(s): Fatahchand Mahatma
Publisher: Fatahchand Shreelalji Mahatma

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Page 489
________________ अध्यात्म- कल्पद्रुम ( ३ ) मूलड़ो थोड़ो भाई व्याज घणो रे, केम करी दीधो रे जाय; तलपद पूंजी में आपी सघली रे, तोहे व्याज पूरुं नवि थाय ॥१॥ व्यापार भागो जलवट थल वटें रे, धीरे नहीं निसानी माय; व्याज छोड़ावी कोई खंदा पर वठे रे, तो मूल आपूं सम खाय २ हाटडुं माडुं रूड़ा माणक चोक मां रे, साजनीयां नुं मनडु मनाय; प्रानंदघन प्रभु शेठ शिरोमणि रे, बांहड़ी झालजोरे ॥३॥ ४४८ शब्दार्थ – तलपद = जमीन भाड़कर - संपूर्ण | धीरे = उधार देवे । खंदा पर वठे = किस्त करा दे । सम = सोगनशपथ | हाटडुं = दुकान | साजनीयां = प्रभु । झालजो = पकड़जो । ( ४ ) प्रभु भजले मेरा दिल राजी रे ॥ प्रभु० ॥ आठ पोहोर की चोसठ घड़ियां दो घड़ियाँ जिन साजी रे ॥ १ ॥ दान पुण्य कछु धर्म कर ले, मोह माया कुं त्याजी रे ॥ प्र०|| २ || . श्रानंदघन कहे समझ समझ ले, प्रखर खोवेगा बाजी रे ॥३॥

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