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अथ पंचदशः शुभवृतिशिक्षोपदेशाधिकारः
इस अधिकार में वृत्ति–वर्तन बताया है उसमें से अधिकतर साधु के योग्य हैं कुछ श्रावक के योग्य है। पाठक अपनी अपनी योग्यता के अनुसार उसका ग्रहण करें। यह अधिकार विशेषतः साधु के लिए लिखा गया है ।
आवश्यक क्रिया करना आवश्यकेष्वातनु यत्नमाप्तोदितेषु शुद्धेषु तमोऽपहेषु । न हत्यभुक्तं हि न चाप्यशुद्धं, वैद्योक्तमप्यौषधमामयान् यत् ॥१॥ ___अर्थ प्राप्त पुरुषों के बताए हुए शुद्ध और पाप के हरने वाले आवश्यक (कार्य) करने में यत्न कर, कारण कि वैद्य का बताया हुवा औषध यदि खाया न होय अथवा (खाया होने पर भी यदि) अशुद्ध हो तो वह रोग का नाश नहीं कर सकता है ॥ १॥
उपजाति विवेचन-वे क्रियाएं जो साधु व श्रावक को प्रतिदिन अवश्य करनी चाहिएं वे आवश्यक कहलाती हैं। उनके नाम हैं-सामायिक, चतुर्विंशतिजिनस्तवन, वंदन, प्रतिक्रमण, क योत्सर्ग और पच्चखाण इन छ: में से सामायिक, श्रावक