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शुभाषित ६
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आकांक्षा रखता है । भिक्षा द्वारा मांग कर लाए हुए निर्दोष अन्न को खाता हुवा भी वह अनाहारी ही है ।
(३, २७)
सच्चे श्रमण को शरीर के अतिरिक्त अन्य कोई परिग्रह नहीं होता है । इस शरीर में भी उसे ममत्व न होने से वह उसका अयोग्य आहारादि के द्वारा पालन नहीं करता है । एवं जरा सी भी शक्ति की चोरी न करता हुवा में लगाता है ।
वह उसे तप (३,२८)
बालक हो, बूढ़ा हो, थका हुवा हो या भी श्रमण अपनी शक्ति के अनुरूप ऐसा जिससे उसके मूल संयम का भंग न हो ।
रोगग्रस्त हो तो आचरण करे कि (३, ३०)
आहार या विहार के विषय में श्रमण यदि देश, काल, श्रम शक्ति और (बालवृद्धत्वादि ) अवस्था को देखकर विचार कर आचरण करता है तो उसे कम से कम बंधन होता है ।
( ३, ३१) मुमुक्षु का सच्चा लक्षण एकाग्रता है । परंतु जिसे पदार्थों के स्वरूप का यथार्थ निश्चय हुवा हो वही एकाग्रता प्राप्त कर सकता है । पदार्थों के स्वरूप का निश्चय शास्त्रों के द्वारा ही हो सकता है; अतः शास्त्र ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न,
सभी प्रयत्नों में उत्तम है ।
(३, ३२)
शास्त्र ज्ञान रहित मुमुक्षु अपना या पराया समझ सकता है और जिसे पदार्थों के स्वरूप की है वह कर्मों को क्षय कैसे कर सकता है ?
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स्वरूप नहीं
समझ नहीं
(३, ३३)