Book Title: Adhyatma Kalpdrumabhidhan
Author(s): Fatahchand Mahatma
Publisher: Fatahchand Shreelalji Mahatma

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Page 482
________________ शुभाषित ६ ४४१ आकांक्षा रखता है । भिक्षा द्वारा मांग कर लाए हुए निर्दोष अन्न को खाता हुवा भी वह अनाहारी ही है । (३, २७) सच्चे श्रमण को शरीर के अतिरिक्त अन्य कोई परिग्रह नहीं होता है । इस शरीर में भी उसे ममत्व न होने से वह उसका अयोग्य आहारादि के द्वारा पालन नहीं करता है । एवं जरा सी भी शक्ति की चोरी न करता हुवा में लगाता है । वह उसे तप (३,२८) बालक हो, बूढ़ा हो, थका हुवा हो या भी श्रमण अपनी शक्ति के अनुरूप ऐसा जिससे उसके मूल संयम का भंग न हो । रोगग्रस्त हो तो आचरण करे कि (३, ३०) आहार या विहार के विषय में श्रमण यदि देश, काल, श्रम शक्ति और (बालवृद्धत्वादि ) अवस्था को देखकर विचार कर आचरण करता है तो उसे कम से कम बंधन होता है । ( ३, ३१) मुमुक्षु का सच्चा लक्षण एकाग्रता है । परंतु जिसे पदार्थों के स्वरूप का यथार्थ निश्चय हुवा हो वही एकाग्रता प्राप्त कर सकता है । पदार्थों के स्वरूप का निश्चय शास्त्रों के द्वारा ही हो सकता है; अतः शास्त्र ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न, सभी प्रयत्नों में उत्तम है । (३, ३२) शास्त्र ज्ञान रहित मुमुक्षु अपना या पराया समझ सकता है और जिसे पदार्थों के स्वरूप की है वह कर्मों को क्षय कैसे कर सकता है ? ૧૪ स्वरूप नहीं समझ नहीं (३, ३३)

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