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अध्यात्म- कल्पद्रुम
अज्ञानी मनुष्य हर महीने महीने कुश के अग्रभाग पर रह सके उतना अन्न खाकर उग्र तप करे तो भी वह मनुष्य, सत्पुरुषों द्वारा बताए गए धर्म को अनुसरण करने वाले मनुष्य के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं पहुंच सकता है । ( ६ - ४४ )
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विविध पदार्थों से भरा हुवा सारा संसार भी किसी एक ही मनुष्य को दे दिया जाय तो भी इससे उसकी तृप्ति नहीं होगी । मनुष्य की तृष्णाएं ऐसी दुष्पूर हैं । (८-१६)
सोने चांदी के कैलाश जैसे असंख्य पर्वत भी लोभी मनुष्य के लिए पर्याप्त नहीं है कारण कि इच्छा आकाश जैसी अनंत है । ( १-४८ )
धन धान्य सहित पूरी पृथ्वी भी किसी एक ही मनुष्य को दे दी जाय तो भी वह उसके लिए पर्याप्त नहीं है । ऐसा जानकर निग्रह ( संयम ) का ग्रासरा लेना ही श्रेष्ठ है ।
( ६- ४९ )
काम शल्य रूप है, काम विष रूप है, तथा काम जहरी सर्प तुल्य है । इन कामों के पीछे पड़े हुए लोग, उनको प्राप्त किए बिना ही दुर्गति पाते हैं। (६-५३)
समय बीतने पर पका हुवा वृक्ष का पत्ता ( अचानक ) गिर जाता है, वैसी ही मनुष्य का जीवन भी ( अचानक ) गिर जाता है, ( मृत्यु हो जाती है ) अतः हे गौतम क्षणमात्र भी प्रमाद न कर ।
( १०- १ )