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अध्यात्म- कल्पद्रुम
शिष्य, गुरु के वचन को कभी निष्फल न जाने दे; वाणी से उसका स्वीकार कर, काया से उसका पालन करे ।
( ८-३३)
४३४
गुणी पुरुष की संगति में रहते हुए उसका चाहिए, अपना शील निश्चल रखना चाहिए और तरह अपने अंगोपांग का संकोच ( नियमन ) संयम में पराक्रमी होना चाहिए ।
विनय करना कछुए की कर, तप और
( ८ - ४६ )
गर्व, क्रोध, माया और प्रमाद के कारण से जो शिष्य गुरु के साथ रहकर विनय नहीं सीखता है, उसकी वह कमी बांस के फल की तरह स्वयं उसके ही नाश का कारण बनती है । ( ६-१)
तथा उनकी
सुकुमार शरीर वाले गर्भ श्रीमंत ( धनी के पुत्र) भी सांसारिक हुनर या कारीगरी सीखने के लिए मारपीट या अत्यंत कष्ट सहन करते हैं, गुरु की पूजा करते हैं प्रज्ञा में रहते हैं, तो फिर अनंत हितरूप मोक्ष तथा उसके साधन रूप शास्त्र ज्ञान की इच्छावाले भिक्षु आचार्य के वचन का उल्लंघन किस प्रकार से कर सकते हैं ?
(६, २, १४–६ )
विनयी पुरुष को विपत्ति है और सब तरह आनंद है, ऐसा जो बराबर क्षित हो सकता है ।
सुविनयी पुरुष को जानता है, वही सुशि( ६, २ – २१ )