Book Title: Adhyatma Kalpdrumabhidhan
Author(s): Fatahchand Mahatma
Publisher: Fatahchand Shreelalji Mahatma

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Page 477
________________ सुभाषित ५ श्री कुंदकुंदाचार्य के समयसार में से अनुवादित निर्विकार परमात्म तत्त्व के ज्ञान के बिना इस परमपद (मोक्ष) को चाहे जितने तपसाधन करते हए भी कोई प्राप्त नहीं कर सकता है। अतः यदि तुझे कर्मबंधन में से मुक्ति चाहिए तो उसी का स्वीकार कर । (२०५) ____यदि तुझे पारमार्थिक सुख चाहिए तो इस परमात्म तत्त्व में ही सदा लीन रह, उसी में सदा संतुष्ट रह और उसी में तृप्त रह । (२०६) ___ यदि किसी मनुष्य को बहुत अधिक समय से किसी बंधन में डाल रखा हो और वह मनुष्य उस बंधन के विषय में चाहे जितने विचार करता रहे इसी से वह उसमें से मुक्त नहीं हो सकता है परंतु यदि वह उस बंधन को काट डाले तो उसमें से छूट सकता है, इसी प्रकार से संसारबद्ध जीव के लिए भी समझना चाहिए। (२६१) बंधन का तथा आत्मा का स्वरूप जानकर जो मनुष्य बंधन से विरक्त होता है वह अपनी मुक्ति साध सकता है। (२६३) प्रात्मा का ज्ञान प्रज्ञा के द्वारा ही हो सकता है। प्रज्ञा

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