Book Title: Adhyatma Kalpdrumabhidhan
Author(s): Fatahchand Mahatma
Publisher: Fatahchand Shreelalji Mahatma

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Page 476
________________ शुभाषित ४ ४३५ गुणों से ही साधु हुवा जाता है और दुर्गुणों से ही असाधु हुवा जाता है, अतः साधु गुणों का स्वीकार करना चाहिए और असाधु गुणों का त्याग करना चाहिए। इस प्रकार से अपनी आत्मा को समझाकर, तथा रागद्वेष का त्याग कर जो समभाव प्राप्त करता है वह शिष्य सबका पूज्य बनता (६, ३-११) जो साधक रात्री के प्रथम और अंतिम पहर में हमेशा आत्म निरीक्षण करता है कि मैंने क्या किया है, मेरे लिए अभी क्या करना बाकी है और मेरे से बन सकता है वैसा क्या, मैं अभी तक नहीं करता हूं, वह जितेंद्रिय तथा धृतिमान (धीर) पुरुष ही जगत में “जागृत" है और वही संयमी जीवन जीता है ऐसा कहा जाता है। (चूड़ा २, १२-१५)

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