Book Title: Adhyatma Kalpdrumabhidhan
Author(s): Fatahchand Mahatma
Publisher: Fatahchand Shreelalji Mahatma

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Page 473
________________ ४३२ अध्यात्म-कल्पद्रुम की है, एवं यह सभी भूत प्राणियों के विश्वास का भंग करता है; अतः असत्य वचन का त्याग करना चाहिए। (६, २–१२) किसी जीव का दिल दुःखे ऐसी कठोर वाणी नहीं बोलनी चाहिए चाहे वह सत्य भी (क्यों न) हों; कारण कि उससे पाप बंधन ही होता है । . (७-११) - मैथुन को सर्व प्रमाद का मूल, असेव्य, अधर्म का मूल कारण, महादोषों का समूहरूप, घोर कर्मों का हेतुरूप तथा सर्व प्रकार के चारित्र को छिन्न भिन्न करने वाला जानकर निःग्रंथ उसके पास भी नहीं जाते । (उसे सर्वथा त्यागते हैं)। (६, २, १५-६) शरीर की शोभा, (टीपटाप) स्त्रो का संसर्ग और रसादार खानपान ये वस्तुएं आत्मगवेषी पुरुष के लिए तालपुट विष (हाथ में लेते ही मृत्यु हो ऐसा विष) जैसी हैं। जिसके हाथ पैर कटे हुए हों, तथा जिसके नाक-कान बेडौल हो गए हों (कुरुप) ऐसी सौ वर्ष की स्त्री का भी साधु पुरुष संसर्ग न करे। (८-५६) संयम और लज्जा के निर्वाह के लिए रखी हुई आवश्यक वस्तुओं को ज्ञात पुत्र भगवान ने परिग्रह नहीं गिना, परन्तु आसक्ति या ममता को ही परिग्रह गिना है। (६, २-११)

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