________________ 426 सुभाषित 3 जो सरल हो, मुमुक्षु हो और निर्दभी हो वही सच्चा अनगार (साधु) है। जिस श्रद्धा से मनुष्य घर का त्याग करता है, उसी श्रद्धा को शंका और आसक्ति छोड़कर हमेशा टिकाए रखे। वीर पुरुष इसी महामार्ग में चलते (1, 18-20) ___सुख दुःख में समान भाव रखकर, ज्ञानी पुरुषों के संग में रहना और अनेक प्रकार के दुखों से दुखी स्थावर जंगम प्राणियों को अपनी किसी भी क्रिया से कष्ट न देना, ऐसा करने वाला तथा पृथ्वी की तरह से सब कुछ सहन करने वाला महामुनि उत्तम श्रमण कहलाता है। (प्रा०. 16) उत्तम धर्म पद को अनुसरने वाले, तृष्णा रहित, ध्यान और समाधियुक्त तथा अग्नि की शिखा जैसे उस तेजस्वी, विद्वान भिक्षु के तप, प्रज्ञा और यश वृद्धि को पाते हैं / (अ० 16) इस प्रकार से काम गुणों में से मुक्त रहकर, विवेक पूर्वक आचरण करते हुए उस धृतिमान और सहनशील भिक्षु के पहले के किए हुए तमाम पाप कर्म उसी प्रकार दूर हो जाते हैं जैसे कि अग्नि से चांदी का मैल दूर हो जाता है / (अ० 16) इस लोक और परलोक दोनों में जिसका कुछ भी बंधन नहीं है तथा जो तमाम पदार्थों की आशंका से रहित, निरालंब और अप्रतिबद्ध है, वैसा वह महामुनि गर्भ में आने जाने से मुक्त होता है, ऐसा मैं कहता हूं / (अ० 16)