Book Title: Adhyatma Kalpdrumabhidhan
Author(s): Fatahchand Mahatma
Publisher: Fatahchand Shreelalji Mahatma

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Page 460
________________ सुभाषित २ ४१६ निर्बल बैल को उसका हांकने वाला चाहे जितना मारमार के हांके परन्तु वह तो और भी (गालियां) अशक्त बनता जाता है और अंत में भार खींचने के बदले थककर जमीन पर गिर ही जाता है। वैसी ही स्थिति विषय रस चखे हुए मनुष्य की है। विषय तो आज या कल छोड़ कर जाने वाले हैं यह सोचकर कामी पुरुष को चाहिए कि वह प्राप्त हुए या किसी कारण से न प्राप्त हुए कामों की वासना को छोड़ दे। (२, ३, ५-६) अंत में पछताना न पड़े अत: अभी से हो आत्मा को भोगों में से अलग कर, समझायो । कामी पुरुष अंत में बहुत पछताता है और विलाप करता है। (२, ३-७) वर्तमान काल ही एक मात्र योग्य अवसर है और बोधि प्राप्ति सुलभ नहीं है, ऐसा समझकर अपने कल्याण में तत्पर हो जाओ। अभी के जिन भी यही कहते हैं और भविष्य के भी यही कहेंगे। (२, ३-१६) जो उचित समय में पराक्रम करते हैं वे ही पीछे से नहीं पछताते ह । वे धीर पुरुष बन्धनों में से उन्मुक्त होकर जीवन में प्रासक्ति रहित होते हैं। (३, ४-१५) __ जो काम भागों और पूजा सत्कार को त्याग सके हैं उन्होंने सब कुछ त्यागा है । वैसे ही लोग मोक्षमार्ग में स्थित हो सके हैं। (३, ४-१७)

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