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सुभाषित ३
जो काम गुणों को जीत लेते हैं वे काम से काम को दूर करते हुए वे ( भोगों) में भी नहीं लिपटते हैं ।
वास्तव में प्राप्त हुए
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मुक्त हैं । काम गुणों
(२-७४)
काम भोगों में सदा डूबा रहता हुवा मनुष्य धर्म को नहीं पहचान सकता है । वीर भगवान ने कहा है कि उस महामोह में जरा सा भी प्रमाद न करना चाहिए। शांति के स्वरूप का और मृत्यु का विचार करके तथा शरीर को नाशवान जानते हुए कुशल पुरुष कैसे प्रमाद कर सकता है ? ( २ - ८४ )
सभी प्राणों को प्रायुष्य तथा सुखप्रिय है एवं दुःख तथा वध श्रप्रिय या प्रतिकूल हैं । वे जीवन की इच्छा वाले और जीवन को प्रिय मानने वाले हैं। प्रमाद के कारण से प्राणों को अभी तक जो व्यथा दी है उसे बराबर समझकर फिर से वैसा न करना, इसी का नाम सच्ची समझ है और यही कर्मों की उपशांति है । भगवान के द्वारा दी गई इस समझ को समझता हुवा और सत्य के लिए प्रयत्नशील बना हुआ मनुष्य कोई भी पाप नहीं करता है और न कराता है कारण कि पाप कर्म मात्र में किसी न किसी जीव वर्ग की हिंसा या द्रोह रहा हुवा है । (२, ८०, ६–७ )
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जो अहिंसा में कुशल है और जो बंधन में से मुक्ति प्राप्त करने के प्रयत्न में लगा हुवा है, वही सच्चा बुद्धिमान है |
(२-१०२ )
प्रमाद और उसके फलतः काम गुणों में श्रासक्ति यही