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सुभाषित २
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को साधने वाले वे कई युगों से पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं ।
( १४ – १८ )
बुद्धिमान पुरुष ( वस्तुनों के ) अंत की इसीलिए संसार का अंत ला सकते हैं । हम धर्म के लिए ही मनुष्य लोक में मनुष्य हुए हैं ।
सेवा करते हैं
की अराधना
( १५ – १५ )
धर्म कहने मात्र से ही दोष नहीं लगता है- यदि उसका जितेंद्रिय हो, वाणी के दोषों गुणों को आचरने वाला
( ६-५)
कहने वाला क्षांत हो, दांत हो, को त्यागने वाला हो और वाणी के हो ।
जिस वाणी को बोलने से पाप को उत्तेजना वैसी वाणी कभी न बोलनी चाहिए। रहित तथा तथ्य रहित कुछ न बोले ।
दीक्षित
मिलती हो, भिक्षु, गुण
( ६-३३ )
जो ज्ञानी की श्राज्ञा के अनुसार मोक्ष मार्ग में मन, वचन और काया, तीनों तरफ से स्थितं होकर अपनी इन्द्रियों का रक्षण करता है तथा समुद्र जैसे इस संसार को तरने के लिए जिसके पास सब सामग्री है वह पुरुष ( चाहे तो ) दूसरों को उपदेश दे ।
( ६-५५ )