Book Title: Adhyatma Kalpdrumabhidhan
Author(s): Fatahchand Mahatma
Publisher: Fatahchand Shreelalji Mahatma

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Page 455
________________ ४१४ अध्यात्म-कल्पद्रुम भाग सकता है अथवा, "मैं नहीं मरूंगा" ऐसा जो जानता है वही यह विचार करे कि, “यह मैं कल करूंगा"। (१४-२७) (ब्रह्मचारी), घी-दूध आदि उद्दीपन करने वाले (विकारी) रस पदार्थ अधिक न खाए; कारण कि जैसे स्वादिष्ट फल वाले वृक्ष की तरफ पक्षियों का झुण्ड भाग कर आता है वैसे ही उस मनुष्य की तरफ काम वासनाएं द्रौड़ी आती हैं। (३२-१०) जैसे बहुत काष्ठ वाले वन में पवन सहित लगा हुवा दावाग्नि शांत नहीं होता है वैसे ही इच्छानुसार आहार करने वाले ब्रह्मचारी का इन्द्रियाग्नि भी शांत नहीं होता है । आहार किसी को हितकर नहीं होता है । (३२-११) __ यदि कोई मन-वाणी और काया का सम्पूर्ण संयम करने वाला हो तथा सुन्दर एवं अलंकृत देवियां भी जिसे डिगा न सकती हों ऐसे मुनि को भी अत्यंत हितकर जानकर स्त्री आदि से रहित एकांतवास ही स्वीकार करना चाहिए । (३२-१६) जो कामवासनाओं को तर गए हैं उनके लिए दूसरी सभी वासनाएं छोड़ना आसान है । महासागर को तैरने वाले के लिए गंगा जैसी बड़ी नदी भी किस हिसाब में है ? (३२-१८) स्त्रियों से घिरा हुया घर; मनोरंजक स्त्री कथा; स्त्रियों

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