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शुभवृत्ति
३८७ है ? क्या तेरे पास रहे हुए समय व धन का सात क्षेत्र के लिए सदुपयोग करता है ? क्या तेरे आचरण को देखकर तेरे धर्म के प्रति अन्य लोगों को हीनता तो उत्पन्न नहीं होती है ? क्या तू श्रावक कहलाता हुवा ऐसे प्रारंभ सारंभ तो नहीं करता जिससे अन्य धर्मी तेरे धनं व इष्टदेव को घृणा की दृष्टि से देखते हों ? क्या तू धर्म की विपत्ति के समय उपेक्षा तो नहीं करता है ? क्या तू धर्म के लिए कल्पक, शकटार जैसे माहण (जैन ब्राह्मण-महात्मा) की तरह अपना बलिदान दे सकता है ? क्या तुझे अपने परिवार या स्वयं के शरीर की अपेक्षा धर्म पर अधिक अनुराग है ? इस तरह से तू आत्मनिरीक्षण करता हवा, वीर पुरुष की तरह धर्म का पालन कर अपनी शक्ति-प्रशक्ति का विचार करके अच्छे कामों को आचर, बुरों को छोड़ दे । प्रतिदिन ऐसी बातों का विचार करता हुवा तू वीरता पूर्वक मोक्ष की तरफ बढ़। चौदह नियमों को धारण कर ।
पर पीड़ा वर्जन-योग निर्मलता परस्य पीडापरिवर्जनात्ते, त्रिधा त्रियोग्यप्यमला सदास्तु । साम्यैकलीनं गतदुर्विकल्पं, मनो वचश्चाप्यनघप्रवृत्ति ॥ ७ ॥
अर्थ तेरे मन वचन काया के योग दूसरे जीवों को तीनों प्रकार से पीड़ा न देने से निर्मल हों, तेरा मन केवल समता में ही लीन हो जाय, एवं वह अपने दुर्विकल्प छोड़ दे और तेरा वचन भी निरवद्य व्यापार (काम) में ही प्रवृत्त होता रहे। ॥ ७॥
उपजाति