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अध्यात्म-कल्पद्रुम
पणिहन्ति क्षणार्धेन साम्यमालंब्य कर्मतन् । यन्नहन्यान्न रस्तीव्रतपसा जन्मकोटिभिः ।।
अर्थात समता का प्रालंबन लेने से, वैसे कर्मों का एक क्षण में नाश हो जाता है जिनके लिए करोड़ों जन्म तक विविध तपस्या करनी पड़ती है। हे बंधु ! एक बार एकांत निरुपाधि, निजस्वरूपलीनता, अजरामरत्व, अशांति का अभाव तथा स्थिरता का विचार कर । यदि ये तुझे उत्तम प्रतीत हों तो समता का प्राश्रय ग्रहण कर इससे तुझे बहुत सुख प्राप्त होगा। इसके लिए अभी समय है, योग्य अवसर भी है, फिर ऐसा अवसर मिले या न मिले अतः तू समता प्राप्ति के लिए उद्यम कर।
अविद्या त्याग ही समता का बीज
त्वमेव दुःखं नरकस्त्वमेव, त्वमेव शर्मापि शिवं त्वमेव । त्वमेव कर्माणि मनस्त्वमेव, जहीह्यविद्यामवधेहि चात्मन् ॥२॥
अर्थ हे आत्मा ! तू ही दुःख है, तू ही नरक है; तू ही सुख और मोक्ष भी तू ही है। तू ही कर्म और मन भी तू ही है । अविद्या को छोड़ दे और सावधान हो जा ।।२।।
___ इंद्रवज्रा विवेचन हे आत्मा ! तू ही दुःख है, कारण कि उन दुःखों के कारण भूत कर्म तूने ही किए हैं। सुख दुःख की सच्ची झूठी कल्पना भी तू ही करता है। इसी तरह से नरक भी तू ही है । दुःख का संचय करने वाला और उनको समझने