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अध्यात्म-कल्पद्रुम
यह विवेचन जो आप श्री ने पढ़ा है वह आपके ही एक बालक द्वारा अर्पित है इसमें कहीं कहीं कटु शब्दों का प्रयोग हुवा है जिसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं। विशेषकर यतिशिक्षा के पाठ में अति तिक्त, कटु, मार्मिक शब्दों का व भावों का प्रदर्शन मैंने किया है परंतु करूं क्या यह पाठ ही ऐसा है और उसमें वर्णित दोष आज प्रायः उस वर्ग में देखे जा रहे हैं अतः उनकी सेवा में सादर वंदन करता हुवा उनसे क्षमा मांगता हूँ और चाहूंगा कि वे अपना मुंह इस दर्पण में देखें और उसे साफ करें। __ग्रंथकर्ता की भावना शुद्ध थी, वह सबका उपकार चाहते थे उसी भावना के वशीभूत होकर उसी को पुष्टी में श्री मोतीचंद भाई ने विवेचन किया था और मुझ अल्पबुद्धि ने भी वैसा ही प्रयास किया है। यद्यपि मैंने अधिक खुले शब्दों का प्रयोग किया है तथापि काल की दृष्टि से क्षमा चाहता हूं। ____ इसमें जो आत्मा को आनंद देने वाले शब्द या भावादि हैं वे ग्रंथकर्ता के हैं और जो कुछ चुभने वाले या आत्मा को क्षुब्ध करने वाले हैं वे सब मेरे हैं। पाठक अमृत का पान करते हुए इस ग्रंथ का सदुपयोग कर मुझे कृतार्थ करें।
अंत में सब जीवों के कल्याण की कामना करता हूं तथा अपने कल्याण के लिए जिनराज से प्रार्थना करता हुवा सब जीवों से क्षमा मांगता हूं। कृपया सब क्षमा करें। सुखी रहें सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावे । वैर पाप अभिमान छोड़ जग नित्य नये मंगल गावे ॥
ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति