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मनुष्य भव की दुर्लभता के दस दृष्टांत ४०६ कंधों पर रहने वाला लकड़ा जिससे उनको इधर उधर भागने से रोका जाता है, उसके दोनों कोनों पर छेद होते हैं उन छेदों में शमी फंसाई जाती है। बैलों के गले में पट्टी लपेट कर उस पट्टी को इस शमी (खीलें) में फंसाया जाता है । ) डालें और दोनों समुद्रों में दुर्धर तरंगे आती हों तो जैसे उस युग में शमी का प्रवेश दुर्लभ है वैसे ही मानव भव पाना दुर्लभ है।
(१०) परमाणु-अगर कोई देवता एक विशाल पाषाण स्तंभ का वज्र से चूरा चूरा कर दे, पीछे वह मेरू पर्वत पर खड़ा होकर सभी परमाणुओं को एक नली में इकट्ठा कर जोर से फूंक मारकर उस चूर्ण को चारों दिशाओं में उड़ा दे । यदि वह फिर से उसी रजचूर्ण द्वारा पाषाण स्तंभ को बनाना चाहे तो यह कितना असंभव है । एक लाख योजन के ऊंचे मेरूपर्वत से हवा के झपाटे के साथ उड़ा हवा वह पाषाण परमाणुओं का समूह जबरन फूंक द्वारा कहों उड़ गया । जैसे उसी चूरे द्वारा फिर से वही स्तंभ बनाना दुर्लभ है वैसे ही महान कठिनता से पाए हुए मानव भव को खोकर फिर से पाना दुर्लभ है।
मानव भव की दुर्लभता का विचार कर इसका सदुपयोग करना चाहिए।