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अध्यात्म- कल्पद्रुम
और समकित गुणों को प्राप्त नहीं होने देते हैं । यह सोलह भेद हुए । इसमें हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा तथा स्त्री वेद, पुरुष वेद और नपुंसक वेद ये नौ नोकषाय मिलाने से कुल २५ भेद हुए । ये कर्मबंध के प्रबल हेतु हैं । योग पंद्रह हैं: - मनयोग के चार भेद हैं ।
(१) सत्य मनोयोग - सच्चे विचार करना ।
( २ ) असत्य मनोयोग - झूठे विचार करना । (३) मिश्र मनोयोग - जिस विचार में कुछ बात सच्ची और बाकी झूठी हो ।
( ४ ) असत्यामृषा मनोयोग - सामान्य विचार, झूठे या बुरे के भेद बिना के विचार । व्यवहारिक विचार जैसे कि घड़ा भरता है, पर्वत जलता है, नदी बहती है ।
वचन योग के चार भेद हैं- सत्य वचन योग, असत्य वचन योग, मिश्र वचन योग और असत्यामृषा वचन योग । काय योग के ७ भेद हैं :
( १ ) तैजस कार्मण काय - जब जीव एक गति से दूसरी गति को जाता है तब उसके अनादिकाल से साथ रहने वाले भव मूल के नाम से प्रसिद्ध दोनों शरीर ( तैजस और कार्मण ) साथ रहते हैं । तैजस के कारण वह भावी भव में प्राहार लेकर उसे पचाकर शरीर रूप से बना सकता है और कार्मण से नयी नयी अवस्थाएं पाने साथ नए कर्म पुद्गल ग्रहण कर सकता है ।
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