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अध्यात्म-कल्पद्रुम त्यागता है ? परन्तु जो इष्ट और अनिष्ट गंधों के प्रति राग द्वेष छोड़ देते हैं वही मुनि हैं ॥ १२ ॥ अनुष्टुप
विवेचन-जिन जीवों के घ्राणेंद्रिय नहीं है वे तो मज़बूरन ही घ्राणेंद्रियसंयमी बन रहे हैं परन्तु जो मनुष्य अपनी इच्छा पूर्वक सुगंधयुक्त पदार्थों का सेवन नहीं करते हैं एवं उन सुगंधी पदार्थों की तरफ उनका राग नहीं है एवं दुर्गंधयुक्त पदार्थों की तरफ द्वेष नहीं है वे ही मुनि हैं । घ्राणेंद्रिय को वश में न रखकर भौंरा कमल में कैद हो जाता है और हाथी के मुख में पहुंच जाता है। सांसारिक पदार्थों से जो अलिप्त है वही धन्य है।
रसेन्द्रिय संवर जिह्वासंयम मात्रेण, रसान् कान् के त्यजन्ति न । मनसा त्यज तानिष्टान्, यदीच्छसि तपःफलम ।।१५।।
अर्थ-जीभ के संयम मात्र से कौन रसों को छोड़ते नहीं हैं ? यदि तू तप के फल पाने की इच्छा रखता हो तो सुंदरमधर लगने वाले रसों को छोड़ दे ।। १५ ।। अनुष्टप
विवेचन—संसार का मोह प्रदर्शन कराने में सहायक यदि कोई है तो जीभ है। बड़े बड़े महमानों के लिए खाने की बड़ी तैयारी करनी पड़ती है जिससे ही उनके प्रति स्नेह प्रकट किया जाता है। हम कहीं महमान बन कर जावें और स्वादिष्ट भोजन या मिष्टान्न न बन हो तो कहते हैं उन्होंने