________________
३७६
अध्यात्म-कल्पद्रुम
नजदीक आने पर शासनदेव ने उनके बह जाने के भय से कुणाला में बारिश न होने दी, बाकी सब जगह बारिश हुई। गांव के लोगों ने वरशा के प्रभाव का कारण इन दोनों को जानकर इन्हें खूब पीटा जिससे क्रोधित होकर उन्होंने कुणाला में १५ दिन तक निरंतर वारिश होने का श्राप दिया फलतः पूरा नगर बह गया और वे साधु मरकर ३२ सागरोपम तक सातवीं नरक में रहे ।
क्रियावंत की शुभ योग में प्रवृत्ति होनी चाहिए जिसका कारण यस्यास्ति किंचिन्नतपोयमादि, ब्रूयात्स यत्तत्तुदतां परानृ वा । यस्यास्ति कष्टाप्तमिदं तु किं न तद्भ्रंशभीः संवृणुते स योगान् २०
अर्थ – जिसके तपस्या आदि कुछ भी नहीं है वह तो चाहे जैसा बोले, या दूसरों को कष्ट दे, परन्तु जिन्होंने महान कष्ट से तपस्यादि प्राप्त की है वे उसका नाश हो जाने के भय से योग का संवर क्यों नहीं करते हैं ? इंद्रवज्रा
विवेचन - जैसे प्रति साधारण मनुष्य और प्रतिष्ठित नागरिक के बर्ताव, बोल और व्यवहार में अंतर है अर्थात सदा निरर्थक बोलने वाले, किसी को कुछ भी कह देने वाले साधारण मनुष्य को अपनी बात के निरर्थक जाने में या अपने कथन का कुछ भी असर न होने या अपमान के लिए खेद नहीं होता है परन्तु एक प्रतिष्ठित इज्जतदार व उच्चपदस्थ नागरिक को अपनी प्रतिष्ठा का डर रहता है, अपने वचन के निरर्थक होने का डर रहता है जब कि पहले को कोई डर नहीं है, दूसरा अपनी प्रतिष्ठा के भय से