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मिथ्यात्वनिरोध-संवरोपदेश
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बाहर निकाले कि तत्काल उस पशु ने उसे मार दिया, परंतु जो कछुपा चुपचाप पड़ा रहा उसको कोई दुःख नहीं हुआ। शरीर के संवर का लाभ स्वयं को ही मिलता है अतः हे प्राणी तू स्वयं अपने पर दया करके शरीर का संवर कर । सूरजसांढ़ या अमरिये बकरे की तरह भटकता हुआ इधर उधर घूमकर कर्मों को मार न खा ।
काया को अप्रवृत्ति-काया का शुभ व्यापार कायस्तंभान्न के के स्युस्तरुस्तंभादयो यताः । शिवहेतुक्रियो येषां, कायस्तांतु स्तुवे यतीन् ॥ ११ ॥ अर्थ मात्र काया के संवर से वृक्ष, स्तंभ आदि कौन कौन संयमी नहीं है ? परन्तु जिनका शरीर मोक्ष पाने के लिए क्रिया करने में उद्यत रहता है, वैसे यति की हम स्तुति करते हैं ॥ ११ ॥ ..
अनुष्टुप _ विवेचन शरीर को जबरदस्ती से एक स्थान पर बिठाए रखना या उससे कोई काम न लेना संवर नहीं कहलाता है, ऐसे तो वृक्ष और थंभे भी एक ही स्थान पर टिके रहते हैं, परन्तु जो शरीर से स्व-पर के हित साधन के काम करते हैं मोक्ष साधन की शुभ क्रियाओं का अनुष्ठान करते हैं वे ही संवर करते हैं अतः वे स्तुति के पात्र हैं। इस शरीर से अनेक तरह के काम-धनोपार्जन, स्वरंजन, परभंजन परपीड़न होते हैं परंतु सार्थक तो वहीं हैं जो आत्मा को वास्तविक शांति देने वाले हैं, अतः शरीर पर शुभ नियंत्रण करना चाहिए।