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यतिशिक्षा
अर्थ-चारित्र पालने में इस भव में तेरे पर नियंत्रणा होती है और परभव में भी तिर्यंच गति में, स्त्री के गर्भ में अथवा नरक के कुंभी पाक में भी नियंत्रणा (कष्ट, पराधीनता) होती है। इन दोनों नियंत्रणाओं में पारस्परिक विरोध है अतः विवेक से काम लेकर दोनों में से एक को ग्रहण कर ॥ ३४ ॥
उपजाति विवेचन—साधु जीवन में बहुत हो नियंत्रणा सहनी पड़ती है । व्रत आदि के कारण से सहना पड़ता हुवा कष्ट तथा तीर्थंकर महाराज व गुरु महाराज की आज्ञा पालन की पराधीनता, प्रत्येक कार्य गुरु की आज्ञा व देख रेख में करना आदि भी नियंत्रणा है । परभव में माता की कुक्षी में निवास करते हुए सहना पड़ता कष्ट, पशु पक्षी योनि का कष्ट अथवा नरक की कंभी पाक का कष्ट जोपराधीनता से सहना पड़ता है यह भी नियंत्रणा हैं। इन दोनों में परस्पर विरोध है। दोनों में से एक को तुझे स्वीकार करना पड़ेगा। इन दोनों में से एक को चुनना पड़ेगा अतः तू विवेक से काम लेकर एक को चुन ले । समझदार तो चारित्र की नियंत्रणा को ही पसंद करेगा।
परोषह सहने का उपदेश ( स्ववशता में सुख ) सह तपोयमसंयमयंत्रणां, स्ववशतासहने हि गुणो महान् । परवशस्त्वति भूरिसहिष्यसे, न च गुणं बहुमाप्स्यसि कंचन ॥३५॥
अर्थ-तू तप, यम, संयम की नियंत्रणा को सहन कर, स्व के वश में रहकर (परीषह आदि का दुःख) सहन करने