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यतिशिक्षा
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अर्थ-युग समिला आदि सुप्रसिद्ध दृष्टांतों के अनुसार महामुश्किल पाए जाने वाले बोधिरत्न (समकित) को पाकर तू शत्रुओं के आधीन न होकर थोड़ा सा भी आत्महित कर जिससे तुझे इच्छित सुख की प्राप्ति हो ॥ ५२ ॥ पुष्पिताना
विवेचन–इच्छित सुख मोक्ष है उसका बीज समकित है । उस समकित को पाने के ग्यारह कारण हैं-अनुकंपा, अकाम निर्जरा, अज्ञान तप, दान, विनय, अभ्यास, संयोग वियोग दुःख, उत्सव, ऋद्धि और सत्कार । मनुष्य भव की दुर्लभता के लिए दश दृष्टातों में से एक दृष्टांत है युग-समिला है । स्वयं भू रमण रमण समुद्र (अनंत द्वीप समुद्रों के पश्चात अर्ध राजप्रमाण, सबसे बड़ा समुद्र) के पश्चिम भाग में युग (बैल के कंधे पर डाला जाने वाला जूड़ा) को डाला जाय और पूर्व भाग में समिला (वह खीली जो जूड़े में डाली जाती है) को डाली जाय इतनी दूरी व समुद्र की तरंगों के कारण जूड़े में खीले का फसना महान कठिन है, शायद यह भी संभव हो जाय तो भी मानव भव पाना इससे भी दुर्लभ है और बोधिबीज मिलना इससे भी दुर्लभ है। अतः हे यति ! अपने आत्महित के लिए थोड़ा सा भी प्रयत्न कर, नहीं तो काम क्रोध आदि शत्रु के वश में होकर तू भव में भटकता रहेगा। इन शत्रुओं के चंगुल से निकल, जिससे तुझे इच्छित सुख मिलेगा।
शत्रुओं को नामावली द्विषस्त्विमे ते विषयप्रमावा, असंवृता मानसदेहवाचः । असंयमाः सप्तदशापि हास्यादयश्च बिभ्यच्चर नित्यमेभ्यः ।५३।