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अध्यात्मक- कल्पद्रुम
बजाय सन्मार्ग पर ले जाना चाहिए इसी में स्व व पर का कल्याण है ।
चारित्र प्राप्ति - प्रभाव त्याग
प्राप्यापि चारित्रमिदं दुरापं, स्वदोषजयंद्विषयप्रमादैः । भवांबुधौ धिक् पतितोऽसि भिक्षो, हतोऽसि दुःखैस्तदनंतकालम् ५१
अर्थ- महान कष्ट से भी दुर्लभ ऐसे इस चारित्र को पाकर अपने दोषों से उत्पन्न किए गए विषय और प्रमाद के द्वारा हे भिक्षु ! तू संसार समुद्र में गिरता जा रहा है अतः उसके परिणाम से अनंतकाल तक दुःख सहेगा ।।
५१ ।।
उपजाति
विवेचन - श्रात्मभान भूलने से जीव को विषय, कषाय और प्रमाद की प्राप्ति होती है इससे नए कर्मों की श्रृंखला शुरू होती है । भाग्योदय से तुझे ऐसा अवसर मिला है, महान कष्ट से भी कठिनता से मिलने वाला चारित्र तेरे उदय में आया है अतः तू अपने आपको संयम में रखकर उन पिछले विषय व प्रमाद की परंपरा को मिटा दे और नए विषय व प्रमाद से दूर रह, नहीं तो तेरा भव भ्रमण व संसार कूप पतन का क्रम नहीं मिटेगा ।
बोषि बीज प्राप्ति आत्महित साधन
कथमपि समवाप्य बोषिरत्नं युगसमिलाविनिदर्शनाद्दुरापम् । कुरु कुरु रिपुंवश्यतामगच्छन्, किमपि हितं लभते यतोऽथितं शम् ५२