________________
३४६
अध्यात्म-कल्पद्रुम (संयम को) सुचारु व वास्तविक रीति से पालेगा तो तुझे सर्वोत्कृष्ट फल (मोक्ष) की प्राप्ति होगी। तेरा ऊपरी साधुपन तो सबको नजर आता है लेकिन अंदर का तो तू ही जानता है। यदि तू जैसा बाहर से साधु है वैसा हो अंदर से भी है तब तो अव्याबाध सुख तेरे समीप ही है अर्थात् सब दुःखों से छुड़ाने वाला सुख-मोक्ष तेरे निकट है ।
पूज्य मुनिराजो ! संसार के दावानल से बचने के लिए आपने संयम मार्ग स्वेच्छा से स्वीकार किया है अतः आपको धन्य है। आप स्वयं तरने व दूसरों को तारने का प्रयत्न कर रहे हैं । आपका जीवन केवल परोपकार के लिए ही है अतः आदरणीय है । परन्तु खेद का विषय है कि आपका जैसा वेष धारण करने वाले कई साधु, यति, उन्मार्ग में चलते हैं । वे लोग अपने नाम के पीछे श्रद्धालु श्रावकों का निरर्थक धन खर्चाते हैं, आपके उन्मत्त हठी व क्रोधी स्वभाव के कारण उन्हें अदालतों के द्वार खटखटाने पड़ते हैं जिससे जैन धर्म की निंदा होती है। न मालूम क्या बात है कि इस समय में प्रायः सभी तरह के अधिकतर साघु सुख को इच्छा करते हैं। उपाश्रयों में खूब सामग्री का संग्रह कर चैत्यवासियों की तरह प्रमादी, आसक्त, व प्रमतावस्था में रह रहे हैं । जैन समाज का अधिक धन आपके सुख के लिए व आपके रोगों का इलाज कराने में या आपको प्रशंसा के ग्रंथ प्रकाशन में या आपके अहं की पूर्ति के लिए खर्च हो रहा है। जिस प्रकार से प्रतिदिन सायंकाल को अंधकार क्रमशः