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यतिशिक्षा
३४७ घर में छा जाता है उसी क्रम से व शनैः शनैः जैन समाज पर अज्ञानाधंकार, निर्धनता व कुसंप छा रहा है। आप जो एक आधार हैं उसकी जड़े भी खोखली हो रही है। आपकी दशा मठधारियों जैसी हो रही है। ३-४ साधु मिलकर विचरते हैं, विहार २-४ दिन का और जमाव १-२ माह का, साथ में नौकर व सब सामान। पहले आपलोग मात्र आत्म कल्याण का ध्येय रखते थे, शास्त्रों को पढ़ते थे, बस्ती से खूब दूर निर्जन स्थान में रहते थे, आपके शब्द मात्र का असर होता था जब कि आज आप श्रावकों के घर की फिक्र करते हैं, आलीशान उपश्रयों में अपने नाम के ज्ञान भंडारों व अल्मारियों से घिरे रहते हैं। एक गच्छ या सिंघाड़े के निमित्त बनवाए गए उपासरों में दूसरे गच्छ, सिंघाड़े या गुरु के शिष्य नहीं ठहराए जाते हैं
__जहां सतत विहार की आवश्यकता है वहां आप जाते ही नहीं हैं जहां लोगों में आपके प्रति अरुचि है, आपके कारण गांव में कुसंप है अर्थात आपको उपाश्रय खाली करने का नोटिस सरकार मारफत दिया जाता है वहीं टिके रहने की आपकी इच्छा तीव्रतर होती है । अब आपको अकेले घूमने में भी संकोच नहीं रहा है।
पांच पांच महाव्रत के धारण करने वाले की ऐसी दुर्दशा !! आपका लोगों पर प्रभाव नहीं। आपके अंदर के शत्रुओं का जोर बढ़ गया है अतः आपका ऊपरी बेष तो वही रहा
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