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अध्यात्म- कल्पद्रुम
है परंतु अंदर विषय कषाय का साम्राज्य शीघ्रगति से बढ़ रहा है । प्रायः वही साधु व साध्वी एक ही गांव में बार २ चातुर्मास करते हैं जिनमें राग उत्पन्न हो जाता है, तरुण साध्वियां युवा साधुनों के संपर्क में आने की भावना करती हैं यह सब समाज का दुर्भाग्य है । जैन समाज अंधश्रद्धालु है । इस समाज में शिक्षा को स्थान कम मिल रहा है अतः वेशधारियों का पाप बढ़ता जा रहा है उच्चकोटि के वैराग्य व त्याग के जैनमार्ग को कई कपटी साधु बदनाम कर रहे हैं । वेष सिंह का बरताव सियार का हो रहा है । पूज्यवर सावधान ! यह क्रांति का युग है । नौजवान स्त्री पुरुष अब इन सब पाखंडों को सह न सकेंगें । आपने दीक्षा ली है इसका किसी पर अहसान नहीं है यदि आप सच्चे साधु हैं तो हमारे पूज्य हैं वरना पेटभरू हैं | आपसे समाज का हित हो सकता हो कीजिए वरना अपनें दुराचरण से वीतराग के नाम को बदनाम न कीजिए | चिंतामणि रत्न रूप जैनधर्म को अपने कुकर्मों से काच का टुकड़ा न बनाइये ।
पूज्य गुरुवर ! क्षमा करें। हम तो आपमें पूर्वाचार्यों का आत्मबल देखना चाहते हैं । श्री हेमचंद्राचार्य की ज्ञानशक्ति, हीरविजयसूरी की उपदेश शक्ति हरिभद्रसूरि की शास्त्र अनुरक्ति और मुनि सुंदरसूरि की लेखन शक्ति फिर से आपमें देखना चाहते हैं | आनंदघनजी व यशोविजयजी एवं आत्मारामजी की शक्ति आप में देखना चाहते हैं । आप समाज के करणाधार हैं आप जैनधर्म व समाज के बीज हैं । बीज