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अध्यात्म- कल्पद्रुम
है । ऐसों को धिक्कार है । वे शीघ्र ही दुर्गति में जाने वाले हैं । ( अनंत द्रव्यलिंगी भी ऐसी दशा में वरतने से ही निष्फल हुए हैं ) ॥ ५० ॥ शार्दूलविक्रीडित
विवेचन—जीव को पाप कर्मानुसार दरिद्रावस्था, दासपन, परमुखापेक्षा श्रादि प्राप्त होते हैं । उसे कई प्रसंगों में अपमान सहना पड़ता है | यदि किसी पूर्व कर्म के कारण गुरू महाराज का संयोग मिल गया तो उसे उस अपमानित घृणित दशा में से निकाला गया और पूजनीय वेष ( मुनिवेष ) प्राप्त हुआ। वहां वह थोड़ा सा अभ्यास भी करता है और समय जाते उसे कोई पदवी, (पन्यास, उपाध्याय, गणि, आचार्य ) भी प्राप्त होती है । तब उसे लोगों से मिलने बोलने की छूट रहती है जिससे वह लोगों में अपना प्रभुत्व जमाने के लिए तरह तरह का वाग् जाल फैलाता है, लोगों में अपनी तरफ श्रद्धा व अनुराग पैदा करता है, वे अनुरागी लोग उसे तरह तरह का सम्मान देते हैं, उसके उपदेशों को सुनते व मानते हैं और धर्म क्रिया, अनुष्ठान या महोत्सव करते हैं । इससे वह अपने आपको राजा मानता है, एवं अभिमान करता है । उसे नहीं मालूम कि यह सब तो तेरे भगवान के मार्ग पर चलने से, एवं उनका उपदिष्ट वेष धारण करने से व उनके बताये शास्त्रों को पढ़ने के कारण हो रहा है । इसमें तेरा व्यक्तित्व का प्रभाव कुछ भी नहीं है यदि तेरा प्रभाव होता तो तेरी पहले की दशा में ( दीन दरिद्रावस्था ) भी होता । जैसे कोई सरकार का सिपाही वारंट लेकर आता है और किसी को गिरफ्तार करके मन में