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अध्यात्मक-कल्पद्रुम
अर्थ संयम पालने के कष्ट से डरकर विषय कषाय से होते हुए अल्प सुख में यदि तू संतोष मानता हो तो फिर तिर्यंच, नारकी के भावी दुःखों को स्वीकार करले और स्वर्ग या मोक्ष लाभ की इच्छा को छोड़ दे ।। ३७ ॥ उपजाति ___ विवेचन यदि कोई बीमार दवा न पीता हो तो उसे कटाक्ष से कहा जाता है कि मिठाई खा, बासुंदी खा, आचार खा ? यदि तेरी इच्छा अच्छा होने की नहीं है तो यह खा ! इसी तरह से सूरिश्वर ने कटाक्ष वचनों से मुनि को जागृत करने के लिए कहा है कि यदि तुझे संयम में कष्ट प्रतीत होता हो और विषय कषाय में आनंद आता हो तो फिर स्वर्ग या मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा छोड़कर तिर्यंच या नरक के दुःखों को स्वीकार कर ले ।
परिषह सहने में विशेष शुभ फल की प्राप्ति समचितात्तिहतेरिहापि, यस्मिन्सुखं स्यात्परमं रतताम् । परत्र चेंद्रादिमहोदयश्री, प्रमाद्यसीहापि कथं चरित्रे ।। ३८ ॥ __अर्थ चारित्र से इस भव में सर्व प्रकार की चिंता और मन की आधि का नाश होता है अतः उसमें जिसका मन लगा हो उनको बड़ा सुख होता है और पर भव में इन्द्रासन या मोक्ष की महालक्ष्मी प्राप्त होती है । (इस प्रकार से फल होते हुए भी) तू चारित्र में प्रमाद क्यों करता है ॥ ३८ ॥
उपजाति विवेचन–चारित्र पालन में स्वात्म संतोष और प्राप्त