________________
यतिशिक्षा
३२३ है यद्यपि प्रयत्न से वे साधे जा सकते हैं तो भी तू यदि मन पर अंकुश रखता हो तो इन्द्रिय दमन, आत्म संयम, योग आदि शारीरिक कष्ट के सहे बिना भी महाविकट कार्य साध सकेगा। मन के द्वारा साधी जा सकने वाली अनित्य आदि बारह भावनाएं, इर्यादि पांच समिति और मन आदि तीन गुप्ति तो तू सरलता से धारण कर सकता है, इनमें तो कोई शारीरिक कष्ट नहीं पड़ता है तो फिर इनके साधने में तू प्रयत्न क्यों नहीं करता है ? '
भावना-संयम स्थान-उसका आश्रय अनित्यताद्या भज भावनाः सदा, यतस्व दुःसाध्यगुणेऽपि संयमे । जिघत्सया ते त्वरते ह्ययं यमः, श्रयन् प्रमादान्न भवाबिभेषि किम् ___अर्थ अनित्य आदि सभी भावनाएं सदा भाता रह, संयम के (मूल और उतर) गुण जो दुःसाध्य हैं उनमें यत्न कर, यह यमराज तुझे खा जाने की जल्दी कर रहा है । क्या प्रमाद का सहारा लेते समय तू संसार भ्रमण से नहीं डरता है ? . ॥ ४० ॥
वंशस्थविल विवेचन हे साधु ! प्रमाद से संसार बढ़ता जा रहा है, मृत्यु नजदीक आती जा रही है और समय बीतता जा रहा है। यह मनुष्य देह फिर मिलना महा दुर्लभ है अतः तू सदा बारह भावना भा, चरणसित्तरी का पालन कर, जिसमें महाव्रत, यति धर्म, संयम, वैयावच्च, ब्रह्मचर्य की गुप्ति, कषाय त्याग आदि का समावेश है एवं करणसित्तरी का