________________
यतिशिक्षा
३२९
विवेचन-योग अर्थात मन, वचन और काया का पाप काम आत्मशक्ति से बंद करना। इन तीनों को वश में रखना इससे सांसारिक दुःखों का नाश और मोक्ष को प्राप्ति सुलभ होती है । ग्रंथकार कह रहे हैं कि तेरे मन, वचन और काया श्लोक के कथन के अनुसार बिगड़े हुए हैं फिर भी तू लब्धि और सिद्धि चाहता है, कितना आश्चर्य है ? वास्तव में तुझे मिथ्या मनोरथों ने परवश कर रखा है। सारांश कि जिसके मन वचन और काया स्ववश हो जावें तो बाद में उसे लब्धि या ऋद्धि की इच्छा भी नहीं रहती है। वास्तव में न लब्धि व ऋद्धि से मोक्ष ही मिलता है।
मनोयोग पर नियंत्रण-मन गुप्ति मनोवशस्ते सुखदुःखसंगमो, मनो मिलेद्य स्तु तदात्मकं भवेत् । प्रमादचोरैरिति वार्यतां मिलच्छीलांगमित्रैरतुषंजयानिशम् ॥४२।।
अर्थ–सुख और दुःख पाना तेरे मन के आधीन है । मन जिसके साथ मिलता है उसके साथ एकाकार हो जाता है । अतः प्रमाद रूप चोर से मिलते हुए तेरे मन को रोक रख और शीलांगरूप मित्रों के साथ उसे निरंतर मिलने दे ॥४२॥
वंशस्थ विवेचन–मन का स्वभाव जल या तेल जैसा है। जल में जैसा रंग मिलता है वह वैसा ही रंगीन नजर आता है । तेल में जैसा सुगंधी पदार्थ मिलाना हो वैसा मिल सकता है । तेल, जल में जल्दी फैल जाता है वैसे ही मन संसार में शीघ्र