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यतिशिक्षा
३३३ यति, गृहस्थ की चिंता न करे दधद्गृहस्थषु ममत्वबुद्धि, तदीयतप्त्या परितप्यमानः । अनिवृतांतःकरणः सदा स्वैस्तेषां च पापभ्रंमिता भवेसि ॥४६।।
अर्थ-गृहस्थ पर ममत्व बुद्धि रखने से उनके सुख दुःख की चिंता से संतप्त रहने से तेरा अंतःकरण सदा व्याकुल रहेगा और तू अपने और उनके पापों से संसार में भटकता रहेगा ॥ ४६ ॥
उपजाति विवेचन—साधु एक स्थान पर अधिक न टिकें । शास्त्रोक्त विधि से नव कल्पी विहार करते रहें। एक ही शहर में बहुत अधिक रहने से या बार बार उसी शहर में चातुर्मास करने के निमित्त आकर आठ आठ मास तक स्थिर रहने से कई दोष उत्पन्न होते हैं जिनमें से मोह व दृष्टिराग मुख्य हैं। ये मेरे श्रावक हैं, ये मेरे भक्त हैं उनमें ऐसो ममत्व बुद्धि आ जाती है जिससे गृहस्थों की घरेलु बातों में पड़ने से उनके सुख दुःख के भागी बना जाता है एवं शांति काभंग होता है और परिणामतः स्वयं का व उन श्रावकों का संसार भ्रमण बढ़ता है। गृहस्थों पर से राग दूर करने का एक तो उपाय यह है कि उनसे परिचय कम करना, फालतु बातों का त्याग कर अभ्यास में चित्त लगाना, नवकल्पी विहार करना, एक ही स्थान पर सिवाय वृद्धावस्था, अशक्ति, रोगादि या आवश्यक धार्मिक कारण के विशेष स्थिरता न करमा। दूसरा उपाय है राग का कटु विपाकपन सोचना और आत्मपरिणिति को डिगने नहीं देना।