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अध्यात्म- कल्पद्रुम
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तिरस्कार सहना । स्ववध होने के अवसर पर भी धर्म त्याग
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न करना । भिक्षा मांगते न शर्माना । भिक्षा इच्छित न
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मिलने पर मन का संतुलन न खोना । रोग सहना । घास या
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तृण का चुभना सहना । शरीर के मैल से घृणा न करना ।
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सत्कार न हो तो परवाह न करना । सत्कार मिले तो फूलना
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नहीं । ज्ञानपन का अहंकार न करना । अज्ञानता पर
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करना । धर्म श्रद्धा दृढ़ रखना ।
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रोष न
सुख साध्य धर्मं कर्तव्य - प्रकारांतर
महातपोध्यानपरीषहादि, न सत्वसाध्यं यदि धर्तुमीशः । तद्भावनाः किं समितीश्च गुप्तीर्धत्से शिवार्थिन्न मनः प्रसाध्याः ३६
अर्थ – हे मोक्षार्थी ! उग्र तपस्या, ध्यान, परीषह आदि सत्व से साधे जा सकते हैं, यदि उन्हें साधने में तू अशक्त है तो भी बारह भावना, समिति और गुप्ति जो मन से साधी जा सकती हैं उनके साधने को भावना तू क्यों नहीं धारण करता है ? ॥ ३६ ॥ उपजाति
विवेचन इस पंचम काल में यदि उग्र तपस्या, (छः माह के उपवास या मास खमण आदि), महाप्राणायाम आदि ध्यान और बाइस परीषह आदि सहन करने की तेरी शक्ति नहीं