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यतिशिक्षा
३२१ वस्तु का भी त्याग मुख्य होता है । ऐसा करने से आत्मा को बहुत आनंद आता है। उसे चिंता (राज्य भय और चोर भय) नहीं होती है। उसे मानसिक पीड़ा अर्थात अत्ति (अपने और दूसरे के भरण पोषण की मानसिक पीड़ा) नहीं होती है । इस निश्चितता के स्थूल सुख के अतिरिक्त चारित्र से शुभ बंधन के कारण पर भव में इन्द्र, महधिक देव आदि की ऋद्धि प्राप्त होती है तथा कर्म बंधन के प्रभाव से मोक्ष प्राप्त होता है । टीकाकार कहते हैं कि :न च राज्यभयं न च चौरभयं, न च वृत्तिभयं न वियोगभयम् । इहलोकसुखं परलोकसुखं, श्रमणत्वमिदं रमणीयतरम् । ___ जो परभव, आत्मा और पुद्गल का भिन्न स्वभाव तथा जीव की भिन्न भिन्न स्थिति का स्वीकार करते हैं उन्हीं को इस आध्यात्मिक विषय में आनंद आता है । साधु जीवन को उद्देश में रखकर लिखी गई यह शिक्षा गृहस्थ के लिए भी हितकर है अतः इसका खूब मननकर पालन करना चाहिए । बाइस परीषह ये हैं :
समता से भूख, प्यास, सर्दी, गरमी सहना। मच्छरों
डंक सहना । शास्त्र के प्रमाण से अधिक वस्त्र नहीं रखना।
संयम में अप्रीति न करना। स्त्री संग का सर्वथा त्याग । अप्रति बद्ध विहार। अभ्यास के स्थान की मर्यादा रखना। सख्त या कम शय्या के कारण रागद्वेष न करना। समता से
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